बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

‘जब प्रेमी लगे प्यारा’


वासना हत्या कथा
गायत्री
उस दिन दोपहर में चैका-बर्तन से निवृत्त होकर गायत्री नहाने बैठी थी कि गिरधारी आ पहुॅचा। उसकी आवाज सुनकर गायत्री स्नानघर से ही बोली, ''हां-हां, बैठो। मैं अभी नहाकर आती हूॅ।''
गिरधारी की नसों में खून सनसना उठा। दूसरी ओर गायत्री भी ऐसे ही किसी मौके की ताक में थी। उसने क्षण भर बाद आवाज दी, ''
तुम्हारे बगल की खॅूटी पर मेरी साड़ी टंगी है जरा मेरी साड़ी उतार कर मुझे दे दो।''
क्षण भर रूक कर गिरधारी जब खूॅटी से साड़ी उतार कर देने गया तो गायत्री ने पूछा, ''बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया है न ?''
गिरधारी ने गायत्री के कहने पर फौरन ही बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया। तब तक गायत्री
स्नानघर से बाहर निकल आई और गीले बाल निचोड़ने लगी। उस समय वह सिर्फ पेटीकोट-ब्लाउज में थी, अतः उसका अर्द्धनग्न उत्तेजक यौवन देखते ही गिरधारी आपा खो बैठा। उसने एकदम झपटकर गायत्री को बांहों में भींच लिया और उन्मत्त भाव से उसे प्यार करने लगा तो गायत्री को लगा जैसे जीवन में पहली बार किसी पुरूष का संसर्ग मिल रहा हो। विह्नल भाव से वह गिरधारी की चैड़ी छाती में दुबक गई।
फिर जैसे तूफान आया गिरधारी और गायत्री एक-दूसरे से समा गए। गायत्री की उम्र 28 वर्ष थी जबकि उसका पति जग्गू 45 साल का था। खेती बाड़ी का काम निबटाकर जग्गू रात में खा-पीकर खाट पर लुढ़क जाता और खर्राटे भरने लगता था। यौवन से लबालब भरी गायत्री जलती रहती थी, मगर गिरधारी से मिले नैसर्गिक यौन-सुख को पाकर गायत्री निहाल सी हो गई और वह दिन-रात गिरधारी की बांहों में समाने के अवसर तलाश करने लगी।
गिरधारी का भी लगभग यही हाल था। यद्यपि अभी उसकी शादी नहीं हुई थी और केवल शादी की बात ही चल रही थी, पर जो सुख उसे गायत्री के संपर्क में मिला, वह उसकी पत्नी कभी दे पाएगी या नहीं यह भविष्य के गर्भ में था। यही सोच-सोचकर गिरधारी अपनी शादी की बात भूलकर गायत्री के रूप यौवन का रसपान करने लगा।
गायत्री चार बच्चों की मां बन गई, लेकिन गिरधारी के साथ उसका संबंध वैसा ही बना रहा, अतः उसके आते ही वह बच्चों को पैसे देकर बाहर भेज देती, फिर निश्चित होकर गिरधारी के साथ मौज-मजा करने लगती।

लल्लन
दरअसल गिरधारी सोनभद्र जनपद में करमा थानान्तर्गत सिधोरागाॅव का रहने वाला था। गिरधारी के पड़ोस में ही गायत्री का मकान था इस कारण दोनों एक दूसरे से परिचित थे। एकही गाॅव और पड़ोस में रहने के कारण दोनों में अक्सर भेंट मुलाकात हो जाया करती, इस भेंट मुलाकात में आगे चलकर गिरधारी के मन में गायत्री के प्रति प्रेम का भाव पैदा कर दिया और वह उसे दिल से चाहने लगा, कुछ ऐसा ही हाल गायत्री का था और वह भी मन ही मन गिरधारी को चाहने लगी। लेकिन भाग्य को शायद उन दोनों का प्रेम स्वीकार नहीं था। न तो गायत्री और न ही गिरधारी ने खुलकर कभी एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार किया कि वे एक दूसरे को कहाॅ तक चाहते है। गायत्री के प्रेम से बेखबर उसके पिता ने सयानी होती बेटी गायत्री की शादी की बात चलाई और घर - वर पसंद आ जाने पर उसकी शादी भी कर दी और गायत्री विदा होकर अपने ससुराल पहुॅच गयी, उसकी सारी चाहत दिल में ही रह गई। यह मात्र संयोग कहें या ऊपर वाले का कोई खेल गिरधारी की शादी की बात भी ड़ेढ साल बाद गायत्री की ही ससुराल पटवारी गाॅव में चली तो उसे गायत्री से सम्पर्क बढ़ाने का जैसे भगवान ने मौका दे दिया हो और वह आये दिन किसी न किसी बहाने से अपनी होने वाली ससुराल जाने के बहाने गायत्री के पति जग्गू के घर पहुॅचने लगा। इसी आने-जाने में एक दिन गिरधारी ने आखिर सालों से दबी अपने मन की बात गायत्री के सामने खोलकर रख ही दी। दरअसल गायत्री की शादी जग्गू के साथ ऐसे हालात में हुई थी कि वह चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर पायी थी। उस दिन जो कुछ हुआ वह पहले से ही दोनों का सोचा हुआ घटित हो गया। 

गायत्री का बड़ा बेटा मंगल 11 वर्ष का हो चला था। एकांत पाने के लिए गायत्री चाहती कि मंगल घर से बाहर ही रहे तो अच्छा हो। इसके लिए वह उसे जेब खर्च भी दे देती। परिणामस्वरूप वह मां की बात ज्यादा मानता।
उस रात जग्गू आंगन में सोया था, तब अचानक उसके पीठ में दर्द होने लगा। उसने सोचा अंदर जाकर पत्नी को जगा ले और उससे कहे तेल गरम करके लगा दे, ताकि सुबह तक उसको आराम मिल जाए। लेकिन कमरे के दरवाजे पर पहुॅचते ही पत्नी के खिलाखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दी तो वह ठिठक गया। विस्मय से उसने दरवाजे की फांक से अंदर झांका तो देखा-गायत्री और गिरधारी एक-दूसरे से लिपटे उन्मुक्त भाव से हंसी-ठट्ठा कर रहे थे। दूसरे ही क्षण उसका खून खौल उठा और तड़प कर दरवाजे पर पैर से प्रहार करता गरज उठा, ''दरवाजा खोल हरामजादी! नहीं तो तोड़ दूॅगा .......।''
आवाज सुनकर दोनों चैंके तो, पर तभी अचानक दरवाजा खोलकर गिरधारी ने जग्गू का मुंह दबोच लिया और गुर्रा पड़ा, ''ज्यादा पड़-पड़ाओ मत जग्गू भइया..... बदनामी तुम्हारी ही होगी। मेरा क्या ? मैं तो यहाॅ से चुपचाप खिसक जाऊॅगा।''
''बदनामी का ही डर होता तो बुढ़ापे में शादी न करते''
गायत्री ने उपेक्षा से सिर झटक कर कहा, ''हूॅ! जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो शोर क्यों मचाते हो ? चुपचाप जाकर सो जाओ, वरना ज्यादा हो-हल्ला किया तो मैं अभी गिरधारी के साथ अपने मायके चली जाऊंगी और लोगांे के पूछने पर कह दूॅगी मेरे पति ने हम दोनों भाई-बहन को बेइज्जत करके घर से निकाल दिया है....।''
गायत्री का यह रवैया देखकर जग्गू खून का घंूट पीकर रह गया। लेकिन जग्गू का इस तरह खामोश रह जाना भी गिरधारी और गायत्री को कचोटने लगा। गायत्री को यह भी डर लगा कि अगर जग्गू ने बाद में सचमुच बेइज्जत करके निकाल दिया तो वह फिर कहीं की न रह जायेगी। गिरधारी कहने को तो मुंह बोला भाई है लेकिन गिरधारी भी तो उसे तत्काल अपने घर में नहीं रख सकेगा। आखिर बदनामी से बचने और गिरधारी से निर्द्धन्द्व संबंध बनाये रखने के लिए उसे एक ही उपाय समझ में आया क्यों न जग्गू को ही रास्ते से हटा दिया जाए ?
गायत्री ने इस संबंध में गिरधारी से बात की तो वह भी तुरन्त तैयार हो गया। इसके बाद उसका ध्यान अपने बड़े बेटे मंगल की ओर गया। कहने लगी, अगर लालच देकर उसको भी इस साजिश में शामिल कर लिया जाए तो वह कभी भी हम दोनों के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकेगा और काम भी आसानी से हो जायेगा; लेकिन गिरधारी ने तुरंत बात काट दी और बोला, ''जब तुम साथ देने को तैयार हो तो फिर मंगल का क्या काम है ? कुछ भी हो मंगल है तो जग्गू का बेटा ही न जाने कब वह कोई बात मुंह से निकाल दे तो हमें और तुम्हें फॅसते देर नहीं लगेगी। बस, तुम किसी भी तरह इतना करो कि जब हम इस घटना को अंजाम दे तो वह घर पर न रहे या तो उसे अपने मायके भेज दो या फिर एक दो दिन के लिए किसी रिश्तेदारी में......।''
और गायत्री ने वैसा ही किया। शाम को मंगल घर लौटा तो उसने बड़ी होशियारी से उसे एक काम के बहाने से अपने मायके अर्थात् उसके ननिहाल भेज दिया और पट्टी पढ़ा दिया कि तेरे पिता की कुछ तबियत ठीक नहीं लग रही है इसलिए तुम नानी के गाॅव में रहने वाले वैद्य जी से उनका हाल बताकर दवा लेकर कल शाम तक लौट आना। मंगल अपने नानी के घर चला गया इसके बाद गायत्री ने फटाफट सारी तैयार कर ली।
उस रोज भी जग्गू रात करीब दस बजे खा-पीकर आंगन में ही सो गया, पर गायत्री और गिरधारी मौके के इंतजार में जागते रहे। आखिर जब उन्हें विश्वास हो गया कि जग्गू गहरी नींद सो गया है, तब करीब ग्यारह बजे वे दबे पांव आंगन में आए और पलक झपकते उसके मुंह पर तकिया रख गिरधारी अपनी भरपूर ताकत से दबाने लगा। दम घुटने के कारण जग्गू छटपटाने लगा तो गायत्री बड़ी बेरहमी से अपने पति के शरीर पर चढ़ बैठी। परिणामस्वरूप पांच-सात मिनट बाद ही जग्गू हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गया।
जग्गू
गायत्री और गिरधारी ने रास्ते का रोड़ा तो हटा दिया, लेकिन योजना के अनुसार लाश को ले जाकर चुपचाप जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी, तब विचार-विमर्श करके दोनों ने एक योजना बनायी और अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से गिरधारी उसी रात गायत्री के घर से बाहर चला गया और गायत्री भोर में योजनानुसार जग्गू की लाश दरवाजे पर रख दी और सबेरा होते ही गायत्री नाटक करती हुई हाहाकार करने लगी, ''मैं कहती थी, ठीक से दवा-दारू करो। लेकिन यह माने तब न, पता नहीं कैसी दवा उठा लाए। खाते ही तबियत और खराब हो गई ..... और चल बसे। मेरी तो दुनिया उजड़ गई। अनाथ हो गई मैं और वह हूं.....हूं......हूं....कर दहाड़ मारकर रोने लगी।''
उस समय दिन के लगभग 8 बजे थे। लल्लन चैकीदार लपकता हुआ जग्गू के घर पहुॅचा तो वहाॅ सचमुच भीड़ लगी थी और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह भी यहाॅ-वहाॅ घुसकर मामले का पता लगाता रहा, फिर जैसे ही उसे पता चला कि अभी तक किसी ने थाने में खबर नहीं दी है तो उसे तुरन्त अपने फर्ज का भान हुआ, वह जग्गू का नजदीकी दोस्त भी था इसलिए बिना देर किये जग्गू की मौत की खबर थानेदार को दे दी।
यह 15 फरवरी की बात है। लल्लन चैकीदार से अपने थाना क्षेत्र में हुए इस हत्याकाण्ड की खबर पाते ही थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने जग्गू की मौत को संदिग्ध मानते हुए अज्ञात अभियुक्तों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कर सब इंस्पेक्टर माधो चरण, कांस्टेबल प्रभु दयाल शर्मा, शिव गोपाल कुशवाहा, मधुसूदन पाण्डेय तथा ड्राइवर शिव मोहन सिंह को साथ लेकर जांच-पड़ताल के लिए घटनास्थल की ओर रवाना हो गये।
पुलिस जनों के घटनास्थल पर पहुॅचते ही वहाॅ जुटी भीड़ काई की तरह फट गई। थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने बारीकी से लाश का मुआयना किया। लेकिन मृतक के शरीर पर कहीं चोट या खून का कोई निशान नहीं मिला, जिससे यह पता चलता कि उसकी हत्या कैसे हुई है ? अतः आवश्यक जांच-पड़ताल के बाद उन्होंने शव को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भेज दिया।
शाम को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई। जिसमें मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया था, अतः श्री कुमार ने पूर्व में दर्ज रिपोर्ट में भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 और जोड़ दिया और इसकी जाॅच की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर स्वयं सम्भाल ली।
यद्यपि हत्यारों ने घटनास्थल पर कोई सूत्र नहीं छोड़ा था, फिर भी श्री कुमार निराश नहीं हुए। उन्होंने जांच-पड़ताल के सिलसिले में सबसे पहले मृतक जग्गू की पत्नी से ही पूछताछ की, ''तुम लोगों की किसी से दुश्मनी या कोई झगड़ा तो नहीं था ?''
''नहीं साहब!''
जग्गू की पत्नी ने तपाक से जवाब दिया, ''वह तो बहुत सीधे-सादे आदमी थे। उन्होंने किसी से 'रे'
तक करके बात नहीं की, फिर झगड़ा क्यों करते .......''
''
लेकिन बिना कारण तो कोई किसी की हत्या करेगा नहीं। खैर, तुम अभी जाओ.....।''
थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने गमगीन माहौल को देखते हुए उस समय ज्यादा पूछताछ करना मुनासिब नहीं समझा और परिवारजनों को जग्गू का अन्तिम संस्कार करने का पूरा समय दे दिया इसके बाद अगले दिन भी उन्होंने कोई भी खोद-विनोद नहीं किया बल्कि अपने तरीके से गुपचुप ढंग से पता लगाने लगे कि इस हत्या का मूल कारण क्या हो सकता है आखिर उनके एक विश्वस्त मुखबिर ने उन्हंे जो कुछ बताया उसे सुनकर चैंक पड़े कि जग्गू की पत्नी गायत्री का चरित्र अच्छा नहीं है और वह अपने मायके के पड़ोसी मुंह बाले भाई गिरधारी से बहुत मेल-जोल रखे हुए थी। बातों-ही-बातों में श्री कुमार ने यह भी पता लगा लिया कि गिरधारी की शादी की बात जग्गू की ही रिश्तेदारी में चल रही थी इसलिए बराबर मिलने-जुलने के बहाने यहाॅ आता रहता था।
यह सुनते ही श्री कुमार का सारा ध्यान घटनास्थल पर जा टिका। उस समय गायत्री अपने पति के शव पर सिर पटक-पटक कर रो जरूर रही थी, लेकिन उसकी आॅखों में आंसू का कतरा भी नहीं दिखाई पड़ा था। यद्यपि उन्हें उसी समय यह बात खटकी थी, पर वह मृतक की पत्नी थी, इसलिए ठीक से सोचे-समझे बिना उन्होंने कोई धारणा बनानी उचित नहीं समझा।
लेकिन अब गिरधारी के साथ गायत्री के मधुर संबंधों की बात सुनते ही श्री कुमार समझ गए कि दाल में कुछ काला है। अतः उन्होंने तुरंत ही एक सिपाही को भेजकर गायत्री को थाने बुलवा लिया और लगे पूछताछ करने, ''तुम्हारे कितने बच्चे हैं। ?''
''चार।''
गायत्री ने तुरंत जवाब दिया, ''एक बेटा और तीन बेटियां, साहब!''
''क्या-क्या नाम हैं उनके ?''
''बड़े बेटे मंगल से तो आप मिल ही चुके हैं। उससे छोटी रजनी, सुनीता और बीना हैं।''
''हूॅ.... और अपने पति के साथ तुम्हारा व्यवहार कैसा था ?''
गिरधारी
''व्यवहार ? व्यवहार तो मेरा वैसा ही था जैसे दूसरे आदमी-औरत रखते हैं......।''
''मेरा मतलब तुम दोनों में कभी लड़ाई-झगड़ा तो नहीं हुआ ?''
श्री कुमार ने ध्यान से गायत्री के चेहरे को देखते हुए पूछा, ''देखो, मुझसे झूठ मत बोलना, वरना ठीक नहीं होगा।''
''झूठ क्यों बोलूंगी, साहब!''
गायत्री सिटपिटा गई। आंखें चुराती हुई बोली, ''रही बात मियां-बीबी के लड़ाई-झगड़े की तो वह किस घर में नहीं होता।''
''घटना से पहले भी तुम दोनों में झगड़ा हुआ था ?''
''नहीं तो .........ऐसी कोई बात तो नहीं हुई थी, साहब! बल्कि जिस रात यह विपत्ति टूटी, उस रात वह कहीं घूमने गये थे। मैं बड़ी देर तक उनकी बाट निहारती रही, फिर थक कर जाने कब सो गई। इसके बाद सबेरे जागी तो दरवाजा खोलते ही देखा, वह बाहर मरे पड़े थे .... मेरी तो दुनिया सूनी हो गई।''
''लेकिन मुझे मालुम हुआ है उस समय तुम कुछ और ही राग अलापती कह रही थीं कि जग्गू पता नहीं कैसी दवा उठा लाया था खाते ही उसकी तबियत और बिगड़ गई और वह मर गया।''
''हां....।''
गायत्री आंचल में मुंह छिपाकर फिर सिसकने लगी तो थाना प्रभारी श्री कुमार डपट पड़े, ''अब ज्यादा त्रिया-चरित्र दिखाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं सब कुछ पता लगा चुका हूॅ। तुम्हारे पड़ोसियों ने तो यह भी बता दिया है कि उस शाम तुम दोनों में झगड़ा भी हुआ था।''
यद्यपि थाना प्रभारी श्री कुमार ने अंधेरे में ही तीर मारा था, पर वह एकदम सही निशाने पर जा लगा। गायत्री हड़बड़ा कर बोली, ''लोगों का क्या, कुछ भी बोलें ? जब मेरी उनकी कोई लड़ाई हुई ही नहीं तो डर कैसा ? वह तो बीच में गिरधारी ........।''
''हां-हां बोलो। गिरधारी ही के बारे में तो जानना चाहता हूं, मैं।''
थाना प्रभारी श्री कुमार ने गरज कर पूछा, ''जल्दी बता, कौन है वह ?''
''व....वह मेरे भाई जैसा है .....।''
''भाई जैसा....? इसका मतलब तुम्हारा कोई और संबंध हैं ? उसके साथ''
गायत्री का चेहरा फक् पड़ गया। डर के मारे वह थर-थर कांपने लगी, फिर भी उसने ढिठाई से जवाब दिया, ''और क्या संबंध होगा, साहब! सगा नहीं है तो क्या ? मानता तो वह सगे की ही तरह।''
''मगर गिरधारी ने तो कुछ और ही रिश्ता बताया है।''
श्री कुमार ने फिर अंधेरे में तीर छोडा़, ''कल हम उसे पकड़ कर थाने लाए थे तब उसने सब कुछ बता दिया। अब भलाई इसी में है कि तुम भी सच-सच बता दो। तुम औरत हो, इसलिए हम तुम्हारे साथ गिरधारी की तरह सख्ती से पेश नहीं आयेंगे, बल्कि सही-सही बता दो तो शायद हम तुम्हारी कुछ मदद ही कर दें। वैसे उसने तो सारा भेद उगल ही दिया है.....''
श्री कुमार की बातों से गायत्री का मनोबल टूट गया, फिर उसने सहज ही आरोप स्वीकार कर लिया। अभी तक वह गायत्री से सच उगलवाने के लिए गिरधारी की गिरफ्तारी की बात झूठ-मूठ में कह रहे थे, लेकिन उसका सनसनीखेज बयान सुनते ही श्री कुमार ने छापा मारकर उसी दिन 18 फरवरी की शाम पांच बजे गिरधारी को टूटहे नाला के पास से दबोच लिया।
फिर उसका भी बयान दर्ज करके अगले दिन 19 फरवरी 2012 को गायत्री के साथ गिरधारी को भी सम्बन्धित न्यायालय में पेश किया, जहाॅ से उन दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। पुलिस जल्द ही जाॅच पड़ताल पूरी करके अदालत में चार्जशीट प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही है।
(कथा पुलिस से प्राप्त तथ्य, घटनास्थल से ली गयी जानकारी एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है।)

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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

‘‘प्यार का पाप छिपाने मैं मार दी गयी रत्ना’’

उड़ीसा राज्य की बहुचर्चित सत्यकथा
प्रतीक चित्र


31 दिसम्बर की रात पूरे देश मैं बड़े जोर-शोर से नूतन वर्ष का स्वागत किया जाता है। उस समय खाने-पीने, नाचने-गाने की धमाचैकड़ी मैं कहीं कोई अप्रिय काण्ड न हो जाए, इसलिए उड़ीसा स्थित फूलबनी शहर मैं कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने भी अपने इलाके मैं मुस्तैदी से गश्त-व्यवस्था कर रखी थी, इसके बावजूद पहली जनवरी को सुबह-सुबह सूर्यनगर के पास एक गन्दे नाले मैं किसी युवती की लाश पड़ी होने की खबर सुनकर वह खिन्न हो उठे।
कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी ने खबर लाने वाले को ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा, तुम्हारा नाम क्या है?
जी साब! राम दुलार..... पर सब मुझे बहादुर कहते हैं।
कहां रहते हो.....?
स्टेट बैंक बिल्डिंग के पास.....
वह तो बस स्टैण्ड के पास है? कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी ने घूर कर पूछा, वहां से इतने सबेरे-सबेरे तू सूर्यनगर क्या करने आया था?
मैं सूर्यनगर मैं चौकीदार करता हूं साब! रामदुलार ने सिटपिटा कर जल्दी से कहा, सबेरे- सबेरे मैं ड्यूटी से लौट रहा था तब पुलिया पर से गुजरते समय एकाएक नाले में नजर गई तो देखा थोड़ी ही दूर पर एक लड़की की लाश पड़ी है। उसके कपड़े खून से तर हो गये हैं, साब।
कोई घाव-साव....
पता नहीं, साब! मैं तो लाश देखते ही डर के मारे भागा, फिर आपको खबर दे देना जरूरी समझा।
तू इसी इलाके मैं पहरा दे रहा था, फिर भी इतनी बड़ी वारदात हो गई? कहीं तूने ही तो नहीं उसे अकेली देख लूट-पाट कर किनारे लगा दिया.....
यह सुनते ही रामदुलार के होश उड़ गये। वह एकदम श्री चौधरी के पैर पकड़ कर रोने-गिड़गिड़ाने लगा, मुझ गरीब के ऊपर रहम कीजिए, हुजूर! मैं चार साल से इस इलाके मैं नौकरी कर रहा हूँ। आप चाहे जिससे पूछ लीजिए.....
वह तो पूछॅगा ही! बुदबुदाते हुए कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी आवश्यक कार्य निपटाकर सीनियर सब इंसपेक्टर नागेश्वर शर्मा, हेड कांस्टेबल मदन तराई और कांस्टेबल सुखदेव, लखनपाल तथा लालता नायक को लेकर रामदुलार के साथ घटनास्थल पर पहुँचे तो वहाँ लोगों की भीड़ लगी हुई थी। पास जाकर देखा तो पहली नजर मैं लगा कि यह बलात्कार के बाद हत्या का मामला है।
मृतका की उम्र मुश्किल से छब्बीस-सत्ताईस साल रही होगी। यद्यपि मृत्यु की पीड़ा से उसका चेहरा विकृत हो गया था, लेकिन नाक-नक्शा से अनुमान लग गया कि वह खाते-पीते संभ्रान्त परिवार की सुन्दर युवती रही होगी। मृतका के शरीर पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज था। दोनों ही कपड़े खून और गन्दे पानी से लथपथ थे। शव पर कहीं भी घाव का निशान नहीं होने के कारण ही इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने बलात्कार का अनुमान लगाया था, पर यह विचार ज्यादा देर नहीं टिक सका। उन्होंने बुदबुदाकर सीनियर सब इंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा से कहा, कम उम्र लड़की के साथ या कई-कई लोगों द्वारा बलात्कार करने पर रक्तस्राव होता तो है, लेकिन इतना ज्यादा खून.......
एक बात और ध्यान देने की है, सर! सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा ने चैकन्नी आँखों से इधर-उधर ताकते हुए कहा, मृतका के कपड़े तो खून से सन गए हैं, लेकिन जहाँ लाश पड़ी है, उसके आस-पास कहीं कतई खून नहीं गिरा है।
कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने सिर हिलाते हुए कहा, यह बात मैंने यहाँ पहुँचते ही नोट की थी और यह भी सोचा था कि घटना के समय मृतका चीखीं-चिल्लाई जरूरी होगी, लेकिन शायद ऐसा कुछ नहीं हुआ था, क्योंकि रात मैं किसी ने चींख-पुकार सुनने के बारे मैं अभी तक नहीं बताया है। इससे साफ जाहिर है कि मृतका चाहे जैसे भी मरी हो उसकी मौत कहीं और हुई है, फिर लाश को यहाँ लाकर डाल दिया गया है।
लाश को शायद पुलिया के ऊपर से ही धकेल दिया गया होगा। ऐसा करने वालों ने सोचा होगा कि लाश नाले मैं बह जाएगी, पर वह किनारे आकर अटक गई।
ठीक है, आप पंचायतनामा भर लीजिए! सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा को आवश्यक कार्यवाही पूरी करने का निर्देश देकर कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी भीड़ से पूछताछ करने लगे....... आप लोग इसे पहचानते है? कौन है यह लड़की.......
वहां मौजूद लोग अनजान से एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे, पर उसी समय चौकीदार रामदुलार ने पास आकर डरते-डरते दबी आवाज मैं कहा, साहब, बिहारी चाय वाला कह रहा है कि यह लड़की छोटे दरोगा जी की रिश्तेदार हैं।
क्या? कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी चौक पड़े, छोटे दरोगा जी की रिश्तेदार? कौन से छोटे दरोगा की? कहां है बिहारी चायवाला? बुलाओं उसे?
क्षणभर बाद ही बिहारी चायवाला थर-थर कांपता हुआ सामने आ खड़ा हुआ। हाथ जोड़कर कहने लगा, मैं अच्छी तरह नहीं जानता, हुजूर! मैंने तो सिर्फ इतना कहा था कि कल रत्ना को छोटे दरोगाजी के साथ ललिता के यहाँ देखा था।
रत्ना.......?
रत्ना
छोटे दरोगा जी इस लड़की को इसी नाम से बुला रहे थे।
अबे कोतवाली मैं तो आठ दरोगा हैं, रत्ना को किस दरोगाजी के साथ देखा था?
बिहारी चायवाला गिड़गिड़ा उठा, मैं उनका नाम नहीं जानता, हुजूर! वह तो वर्दी पहने थे, इसीलिए मैं जान गया कि दरोगा जी हैं। ललिता भी उन्हें दरोगा जी....... दरोगा जी’’ कह रही थी। अभी शायद नए-नए ही आए हैं। एकदम नौजवान थे। लम्बे से..... भरा-भरा बदन और पतली-पतली मूछे, काला चश्मा पहने हुए थे.......
कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा की ओर देखा तो वह इन्कार मैं सिर हिलाते हुए फुसफुसाए, कोतवाली मैं तो ऐसा कोई आदमी नहीं है, सर!
आस-पास के किसी और थाने मैं?
नहीं, सर! सब इंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा सिर हिलाकर फुसफुसाए, कहीं ये दोनों बरगला तो नहीं रहे हैं, सर....... मुझे तो दाल मैं कुछ काला नजर आ रहा हैं।
मैं देखता हूँ। तब तक आप पंचनामा भरकर लाश को सील-मोहर करवा दीजिए, लेकिन इसके पहले फोटोग्राफर बुलवाकर इसकी फोटो जरूर खिंचवा लीजिए बाद मैं काम आयेंगे।
सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा ने कांस्टेबल मधु तराई को फोटोग्राफर बुलाने के लिए भेज दिया। इसके बाद वह लाश का पंचनामा भरने लगे तो कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने फिर बिहारी चायवाले से पूछा, अगर वह दरोगाजी सामने पड़े तो पहचान लेगा तू.......?”
बिहारी ने सूखे होंठो पर जीभ फेरकर सिर हिलाया, पहचान लूँगा हुजूर.......
पहली बार कब देखा था?
कल ही शाम को ललिता के यहाँ।
ललिता कौन है.......?”
बड़ी नामी दाई है, हुजूर! कहते हैं, पहले सरकारी अस्पताल मैं नर्स थी, फिर नौकरी छोड़कर चार-पांच साल से अपना ही धन्धा कर रही है।
धन्धे का क्या मतलब?
बिहारी चायवाला सिटपिटा गया। वह एकाएक कोई जवाब नहीं दे सका, पर इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने जोर से घुड़की दी तो जल्दी से बोला, मैं पक्का नहीं जानता, हुजूर! मुझे तो सिर्फ इतना ही मालूम है कि लोग उसे बच्चा पैदा करने के लिए बुलाते हैं।
यह तो खुला धन्धा है! इसके अलावा और क्या जानता है, वह बता। इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने घूड़ककर कहा, खबरदार, अगर जरा भी झूठ बोला या कुछ छिपाने की कोशिश की तो खाल खींच लूंगा। जल्दी बता, ललिता के धन्धे के बारे मैं और क्या जानता है?
बिहारी चायवाले ने बेबसी से गिड़गिड़ते हुए कहा, मैं कुछ नहीं जानता, हुजूर, पर लोग कहते है कि वह चोरी-छिपे नाजायज गर्भपात भी कराती है।
तू उसके यहां क्या करने गया था?
मैं.... मैं.... मेरी बहू के बच्चा होने वाला है, हुजूर! कल उसकी हालत बहुत खराब थी, इसीलिए ललिता को बुलाने गया था।
तब.......?”
मैं पहुंचा तो रत्ना मेम साहब पहले से बैठी थीं। छोटे दरोगाजी ने डपटकर कहा, ललिता पहले रत्ना को देखेगी, फिर कोई और काम करेगी। इसलिए मैं निराश होकर लौट आया था।
इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी की आंखे एकाएक चमक उठीं, जैसे कोई भूली हुई बात याद आ गई हो। उन्होंने जल्दी से शव के पास जाकर एक बार पुनः सूक्ष्मतापूर्वक उसका निरीक्षण किया, फिर सोचते हुए बिहारी चायवाले से पूछा, ललिता कहाँ रहती हैं?
यहीं सूर्यनगर मैं ही, हुजूर! पुरानी टंकी के पास पूछने पर कोई भी उसके बारे मैं बता देगा।
अब तक शव का पंचनामा भरा जा चुका था। विभिन्न कोणों से लाश के फोटो भी खिंच गये, तब सील-मुहर करवाने के बाद पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भेजवा कर कोतवाली इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी दल-बल के साथ थाने लौट आए और उच्चाधिकारियों को भी इसकी सूचना देने के बाद उनके निर्देशानुसार मामला दर्ज करके जांच का भार सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा को सौपते हुए कहा, आप सबसे पहले ललिता से पूछताछ करें और पता लगाये कि रत्ना को लेकर कौन दरोगा उसके यहां गया था?
सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा को देखकर ललिता क्षणभर अचकचाई सी रही, पर नाले मैं मिली लाश का फोटो देखते ही उसके चेहरे पर तेजी से कई भाव आये और चले गये। वह कांपती आवाज मैं फुसफुसाई, यह.... यह..... इसे क्या हुआ?
श्री शर्मा ने ध्यान से ललिता के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा, तुम इसे जानती हो ?
ललिता जैसे चौक पड़ी। जल्दी से संभलकर उसने जवाब दिया, जानती तो नहीं, पर कल यह मेरे पास आई थी, इसलिए पहचान गई। लेकिन इसे हुआ क्या?
सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा ने उसकी बात का जवाब दिये बिना पूछा, तुम्हें यह तो मालूम होगा कि यह रहती कहाँ थी?
नहीं, साहब!
ललिता
इसे लेकर शायद कोई दरोगा जी आये थे.... उन्हें तुम जानती हो?
दरोगा जी..... हाँ.... हाँ, लेकिन वह इसको लेकर नहीं आए थे, बल्कि इधर से गुजरते समय रत्ना को रोते-छटपटाते देखकर ठमक गये थे।
वह हैं कौन?
मैं नहीं जानती, साहब! पहली ही बार उन्हें देखा था।
रत्ना क्यों आई थी तुम्हारे पास ?
वह चार-पांच महीने की गर्भवती थी। कल किसी तरह उसके पेट में चोट लग गई थी।
फिर?
उसकी हालत बहुत खराब थी, साहब! फिर मैं कोई डाक्टर तो हॅू नहीं, इसलिए यह कहकर लौटा दिया था कि फौरन अस्पताल चली जाए।
जाँच अधिकारी नागेश्वर शर्मा दो दिन शहर के अस्पताल ही नहीं प्राइवेट नर्सिंग होम और डाक्टरों को भी रत्ना का फोटो दिखाकर पूछताछ करते रहे लेकिन किसी ने भी उसे नहीं पहचाना, जिससे साफ जाहिर था कि वह कहीं इलाज के लिए नहीं गई थी।
इस बीच शव का पोस्टमार्टम हो चुका था। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर के बताये अनुसार मृतका की मृत्यु गर्भपात के कारण हुई थी। डाक्टर ने यह भी अनुमान व्यक्त किया कि यह गर्भपात यथासम्भव पेट पर घातक चोट लगने के कारण हुआ होगा।
उपरोक्त जानकारी के बाद जाँच अधिकारी सीनियर सबइंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा ने एकबार फिर गन्दे नाले मैं तलाश करवाई तो पुलिया के नीचे ही एक रक्तरंजित साड़ी बरामद कर ली थी, जिसमैं अविकसित शिशु के लोथड़े बंधे हुए थे। इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी को पूरा सन्देह था कि इस घटनाक्रम मैं ललिता का कुछ हाथ जरूर है, इसलिए उनके निर्देश पर जाँच अधिकारी ने एक कांस्टेबल को सादा वेश-भूषा मैं ललिता पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया था।
5 जनवरी को इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी एक केस की पैरवी के लिए कचहरी गये थे। वहाँ एक सबइंस्पेक्टर को देखते ही वह चौक पड़े और अचानक बिहारी चायवाले की बात याद आ गई। उन्होंने लपककर उससे पूछताछ की तो पता चला कि उसका नाम कामतानाथ दास है। वह नया-नया ही पुलिस विभाग मैं भर्ती हुआ था और करीब साल भर से फूलबनी शहर के ही उदयगिरि थाने मैं तैनात है।
ओह! मैं कई दिन से तुम्हें खोज रहा था। इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने सहज भाव से पूछा, तुम 31 दिसम्बर को अपनी किसी रिश्तेदार रत्ना को सूर्यनगर मैं ललिता दाई के यहाँ ले गये थे.......
रत्ना....... कामतानाथ दास एकदम बचैन हो उठा। तेजी से सिर हिलाता हुआ बोला, आपसे किसी ने गलत कहा है, सर! मेरी किसी रिश्तेदार का नाम रत्ना नहीं है।
हो सकता है कि तुम दोनों को साथ देखकर लोगों ने गलत समझ लिया हो। इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने लापरवाही से कहा, पर उनकी आंखे कामतानाथ दास के चेहरे पर ही अटकी थीं। क्षणभर रूक कर उन्होंने पूछा, तुम ललिता को कैसे जानते हो?
मैं.... मैं उसे नहीं जानता, सर....
लेकिन 31 दिसम्बर को तुम उसके यहाँ गए तो थे।
वह.... वह तो.... दरअसल एक मामले मैं कुछ पूछताछ करनी थी, बस?
तुमने उससे रत्ना के इलाज के बारे मैं भी कहा था।
रत्ना के इलाज के बारे मैं? कामतानाथ दास होंठो ही होंठो मैं बुदबुदाया, फिर जैसे कोई भूली हुई बात याद आ गई, ओ हो, आप उस औरत की बात कर रहे हैं, सर? वह मेरी रिश्तेदार नहीं है....
कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी ने गहरी नजर से ताकते हुए पूछा, उसे जानते हो तुम?
कामतानाथ दास ने जल्दी से सिर हिलाते हुए कहा, उसकी शादी मेरे ही गांव मैं हुई थी, सर इसलिए उसे पहचानता हूँ। उस दिन ललिता के यहाँ काफी अरसे बाद एकाएक मिल गई। शायद उसके पेट में चोट लग गई थी, इसलिए मैंने ललिता से कह दिया था कि वह देख ले और जरूरत हो तो किसी अस्पताल में भेज दें। लेकिन उसे आप कैसे जानते हैं सर?
वह मर गई है....
अरे.... बड़ी अभागी थी, बेचारी। मायके में कोई है नहीं और ससुराल से भी सम्बन्ध विच्छेद हो चुका था.......
क्यों?
पता नहीं, सर! मैं बस इतना ही जानता हूँ कि ससुराल वालों से बहुत दिनों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं था।
फिर वह कहाँ रहती थी?
पता नहीं, सर! उस दिन मैं कुछ जल्दी में था, फिर उससे कोई खास सम्पर्क भी नहीं था, इसलिए मैंने पूछा भी नहीं।
अच्छा....अच्छा! इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने लापरवाही से कहा, यहाँ किसी मुकदमें के सिलसिले में....
हां, सर! चोरी के एक केस में शायद आज बयान हो। मैं चलूँ, नहीं तो पेशी हो जायेगी....
हाँ....हाँ, जाओ। कोतवाली इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी ने इस तरह सिर हिला दिया जैसे कुछ हुआ ही न हो, लेकिन दूसरे रोज दिन भर की जाँच-पड़ताल में ही उन्होंने पता लगा लिया कि कामतानाथ दास झूठ बोल रहा था। आखिर उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी तथ्यों से अवगत करा दिया। फिर 7 जनवरी को जाँच अधिकारी सीनियर सब इंस्पेक्टर नागेश्वर शर्मा ने उदयगिरि थाने में पहुंचकर सबइंस्पेक्टर कामतानाथ दास को गिरफ्तार कर लिया तो उसके चेहरे पर हवाइंयाँ उड़ने लगीं, फिर भी वह लगातार अपने को निर्दोष बताता रहा, लेकिन कोतवाली पहुँचकर वहाँ बैठी ललिता को देखते ही उसका हौसला पस्त हो गया।
कोतवाली प्रभारी गंगाधर चौधरी ने खा जाने वाली दृष्टि से घूरते हुए कहा, तुम्हारे जैसे कुछ गन्दे लोगों की वजह से ही पूरा विभाग बदनाम होता है। तुम्हारी सारी होशियारी की पोल खुल चुकी है, अब भलाई इसी में है कि सीधे-सीधे तुम खुद सारी बात बता दो, वरना तुम्हें तो मालूम ही है कि असलियत उगलवाने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है।
मुझे माफ कर दीजिए, सर! मैं....मैं उस समय आपे मैं नहीं था.......
पहले पूरी बात बताओ।
आखिर ललिता के बयान और कामतानाथ दास की स्वीकारोक्ति से रत्ना की मौत की जो दारूण कथा उजागर हुई, वह इस प्रकार है।
कामतानाथ दास मूलतः फूलबनी जिलान्तर्गत रानीपोखर इलाके का रहने वाला है। रत्ना की शादी उसके पड़ोसी नवीन शर्मा के साथ हुई थी, पर विवाह के तीन महीने बाद ही नवीन शर्मा एक दुर्घटना का शिकार हो गया तो रत्ना का पूरा भविष्य अन्धकारमय हो उठा। जब वह चार साल की थी, तभी मां की मृत्यु हो गई थी। पिता ने किसी तरह उसे पाल-पोसकर बड़ी किया, पढ़ाया-लिखाया भी पर विवाह करके विदा करते ही जैसे उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाकर आँखे मूँद ली।
रत्ना अपने पिता के मरने के दुख से उबर भी नहीं पाई थी कि पति भी चल बसा। इसके बाद तो मुसीबतों का सिलसिला ही शुरू हो गया। उठते-बैठते जेठ-जेठानियों के ताने शूल की तरह चुभने लगे। सम्पत्ति में हिस्सा देने से बचने के लिए उसे तरह-तरह से प्रताडि़त किया जाने लगा। मुहल्ले वालों को उस पर दया तो आती थी, लेकिन उसका पक्ष लेकर बोलने वाला कोई नहीं था। आखिर एक दिन बड़ी निर्ममतापूर्वक ससुराल वालों ने उसे घर से बाहर धकेल दिया।
फिर भी रत्ना जीने का लोभ नहीं छोड़ सकी, वह शहर चली आई। बी00 तक पढ़ी थी, इसलिए सोचा था कि कोई छोटी-मोटी भी नौकरी मिल गई तो वह बड़े मजे से जिन्दगी काट लेगी। लेकिन नियति तो कुछ और ही थी, यहाँ उसका दुर्भाग्य बनकर कामतानाथ दास मिल गया। रत्ना सुन्दर और युवा तो थी ही, उसे नितान्त अकेली और बेसहारा देखकर कामतानाथ दास उसके रूप-यौवन का रसपान करने के लिए पागल हो उठा। पूर्व परिचित होने के कारण उसे रत्ना की निकटता प्राप्त करने में ज्यादा कठिनाई नहीं हुई। अपनत्व और प्यार की भूखी रत्ना भी उसकी हमदर्दी से निहाल हो उठी। देखते-ही-देखते दोनों बहुत घनिष्ठ हो गये।
कामतानाथ दास जरा सा मौका पाते ही रत्ना का सुख-दुःख पूछने आ जाता। एक दिन रत्ना ने उससे भी कहा था कि कोई छोटी-मोटी नौकरी दिला दें.... लेकिन कामतानाथ नाराज हो गया, तुम नौकरी के लिए क्यों इतना परेशान हो? मैं तो हूँ न। तुम्हें किसी चीज की कमी हो तो बताओ, क्या चाहिए?
कामतानाथ दास
किसी चीज की कमी हो तब तो बताऊ! लेकिन दस-बीस-पचीस दिन की बात तो है नहीं कि किसी तरह कट जायेंगे। आखिर तुम कब तक मेरा बोझ उठाओंगे....
मैं तो जिन्दगी भर तुम्हारा बोझ उठाने को तैयार हूँ, रत्ना। तुम मुझे मौका तो दो.....
रत्ना चौक पड़ी, तुम....तुम यह क्या कह रहे हो?
तुमने जो सुना, वहीं कहा है मैंने। कामतानाथ दास ने रत्ना की आँखों मैं ताकते हुए कहा, जिन्दगी जीने के लिए सिर्फ रूपये ही जरूरी नहीं है, रत्ना। तुम नौकरी के लिए परेशान होने के बजाए नये सिरे से घर बसाने की बात क्यों नहीं सोचती?
पागल हो गये हो क्या? रत्ना ने जोर से साँस लेकर कहा, भाग्य में यही सुख होता तो बसा-बसाया घर उजड़ क्यों जाता। भला अब मुझ विधवा को कौन अपनायेगा?
मैं अपनाऊॅगा। तुम एक बार हाँ भर कह दो....
तुम? सचमुच पागल हो गये हो क्या? तुम्हारे घर वाले एक विधवा से तुम्हारा विवाह करेंगे?
विवाह तो दिखावा होता है, रत्ना! समाज अगर विवाह करने की अनुमति नहीं देता तो मत दे। हम बिना विवाह के भी मन से एक हो सकते है। अचानक कामतानाथ दास ने रत्ना का हाथ पकड़ लिया, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, रत्ना। अगर तुमने मेरा प्यार ठुकरा दिया तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊॅगा। अब तुम्हारे अलावा किसी और लड़की के बारे में सोच भी नहीं सकता....
रत्ना को लगा जैसे वह किसी और ही लोक में उड़ी जा रही हो। रोम-रोम पुलक से सिहर रहा था और नसों में एक अजीब-सी-टीस होने लगी। उसी स्थिति में कामतानाथ दास ने सहसा उसे बाहों में भींच लिया और प्यार करने लगा तो रत्ना भी आपा खो बैठी। आखिर उस दिन वह सब कुछ हो गया जो समाज की दृष्टि में भले ही पाप हो, पर रत्ना के लिए एक ऐसा दुर्लभ सुख था, जो कामतानाथ दास ही दे सकता था।
फिर रोज का यही सिलसिला बन गया। समय पंख लगाकर उड़ता रहा। करीब छः महीने कब बीत गये, पता ही नहीं चला। इसके बाद रत्ना गर्भवती हो गई। यह सुनते ही कामतानाथ दास परेशान हो उठा। कहने लगा, यह तो अच्छा नहीं हुआ, रत्ना हम बिना विवाह किये भी जीवन भर एक साथ रह सकते हैं, लेकिन बच्चा....
यह क्या कह रहे हो तुम।रत्ना ने हौसला बढ़ाते हुए कहा, जब तुम एक विधवा को अपनाने से नहीं डरे तो....
मुझे बच्चे को भी अपनाने से डर नहीं लगेगा रत्ना। लेकिन यह तो सोचों कि वह बच्चा कितने दिन समाज का कलंक होने का लांछन और तिरस्कार सह पायेगा।
बच्चे के तिरस्कार की बात सुनकर रत्ना भी काँप गई। इससे कामतानाथ दास को बल मिला। वह तरह-तरह से रत्ना को समझाने लगा। रत्ना कभी सोचती कि कामतानाथ दास की बात मानकर गर्भपात करवा दें, लेकिन माँ की ममता इसके लिए नहीं तैयार होती। तीन-चार महीने उसी उॅहापोह मैं निकल गया जिससे कामतानाथ दास चिढ़ा हुआ था। दरअसल उसे न तो रत्ना से प्यार था न जिन्दगी भर उसका बोझ ही उठाना था। वह तो इस मुसीबत से बचने के लिए कब का रत्ना से किनारा काट चुका होता, लेकिन उसके मादक रूप-यौवन के उपभोग से अभी पूरी तरह मन नहीं भरा था, इसीलिए वह चाहता था कि इस बार रत्ना किसी तरह गर्भपात करवा लें, फिर तो वह खुद ही इस बारे में होशियार रहेगा।
इस बीच कामतानाथ दास ने ललिता के बारे में भी पता लगा लिया था। वह पहले फूलबनी अस्पताल में दाई थी, पर कुछ दवाऐं चुराने के आरोप में नौकरी जाती रही तब एक नर्सिंग होम में काम करने लगी, फिर भी उसकी आदतें नहीं सुधरी थीं। आखिर चार-पाँच साल पहले वहाँ से भी निकाल दी गई तब वह सूर्यनगर में रहकर स्वतंत्र रूप से दाई का काम करने लगी, लेकिन यह सिर्फ दिखावे का धन्धा था, पर इसकी ओट में वह नाजायज ढंग से गर्भपात कराने के धन्धे में लगी थी। जब पुलिस उसे थाने पकड़ लायी तब उसने डरते-डरते स्वीकार किया था कि चार-पाँच महीने का गर्भपात कराने में गर्भवती महिला की जान जाने का खतरा होता है, फिर भी वह दरोगा कामतानाथ दास की धौंस में यह काम करने के लिए तैयार हो गई थी। रत्ना भी कामतानाथ की बात मानकर 31 दिसम्बर को ललिता के यहाँ  चली आई थी, लेकिन ऐन वक्त पर उसने फिर गर्भपात कराने से इंकार कर दिया तो कामतानाथ दास बिगड़ गया और बुरा-भला कहने लगा।
प्रेमी का बदला हुआ रूख देखकर रत्ना भी चिढ़ गई और कहने लगी, मैं अपने बच्चे की हत्या नहीं करूँगी और अगर तुम ज्यादा जिद करोगे तो मैं गाँव जाकर तुम्हारे घर वालों को भी यह बात बता दूँगी ....
नीच.... बद्जात.... तेरी इतनी हिम्मत। कामतानाथ दास आपा खोकर रत्ना पर टूट पड़ा और उसके पेट पर घूसे मारने लगा। रत्ना चीखी तो पर उसकी आवाज गले में ही घुटकर रह गई। देखते-ही-देखते वह गिर पड़ी और दो क्षण छटपटाने के बाद हमेशा-हमेशा के लिए शान्त हो गई।
खून देखकर कामतानाथ दास को होश आया तो पेट पर आघात के कारण गर्भपात होने से रत्ना मर चुकी थी। इसके बाद वहीं रात के सन्नाटें में लाश को ले जाकर गन्दे नाले की पुलिया से नीचे फेंक आया था। गर्भपात से निकला अविकसित शिशु को भी रत्ना की साड़ी मैं बांधकर नाले मैं फेंक दिया गया था। लौटते समय उसने ललिता को धमका दिया था कि अगर उसने इस बारे में किसी से कुछ कहा तो वह उलटे उसी को नाजायज गर्भपात कराने के आरोप में फॅसा कर जेल भेजवा देगा।
सारा काम रात के सन्नाटे में गुपचुप ढंग से निपट गया था। कामतानाथ दास ने सोचा था कि लाश नाले में बह जायेगी और किसी को उसकी काली करतूतों का पता नहीं चलेगा, लेकिन दुर्भाग्य से रत्ना की लाश किनारे जाकर अटक गई। बिहारी चायवाले ने उसे पहचान भी लिया। इसके बावजूद ललिता ने पहले तो कामतानाथ दास की दरोगागिरी की धौंस में गोल-मटोल बातें ही की। सबइंस्पेक्टर कामतानाथ दास ने भी रत्ना को सिर्फ मामूली परिचित बताकर बात टाल दी थी, लेकिन कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर गंगाधर चौधरी को जब पता चला कि रत्ना विधवा थी तो वह चौक पड़े कि यह बात कामतानाथ दास भी जानता होगा, फिर उसने बताया क्यों नहीं?
इस सवाल के साथ ही उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि रत्ना की मौत से ललिता तथा कामतानाथ दोनों ही जुड़े हैं। आखिर ललिता को पकड़कर थाने लाया गया तो उसने थर-थर काँपते हुए सब कुछ बता दिया। इसके बाद ही उच्चाधिकारियों के निर्देश पर कामतानाथ दास को गिरफ्तार कर लिया गया।
सारे मामले का रहस्योद्घाटन होते ही कोतवाली पुलिस ने कामतानाथ दास के विरूद्ध रत्ना की हत्या और सबूत नष्ट करने के आरोप में भा0दं0वि0 की धारा 314, 201 के अन्तर्गत मुकदमा अपराध संख्या 01 पंजीकृत करके 8 जनवरी को उसे अदालत में प्रस्तुत करने के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। प्रस्तुत कथा लिखने तक कामतानाथ दास की जमानत नहीं हुई थी मामले की विवेचना जारी थी।

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