रविवार, 24 फ़रवरी 2013

“दिन में भइया, रात में सइयां”

बहू के प्रेम सम्बन्ध में बाधक सास-श्वसुर को प्रेमी ने दे दी मौत
प्रतीक चित्र


सुबह के साढ़े 8 बज चुके थे रोजाना की तरह उस दिन भी मनोहर दूध वाला रूहट्टा मोहल्ले के प्रताप नगर कालोनी निवासी पुलिस विभाग के अवकाश प्राप्त दरोगा 66 वर्षीय पुरूषोत्तम सिंह के यहाॅ दूध देने पहुॅचा तो कई बार डोरबेल बजाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो वह परेशान हो उठा. उसे कई दूसरे घरों में भी दूध देने जाना था, लिहाजा घनश्याम अपने हाथों से दरवाजे को जोर-थपथपाते हुए आवाज देने लगा, साहब! दरवाजा खोलिए ........ दूध ले लीजिए........... पाॅच-सात बार आवाज देने के बावजूद भी दरवाजा नहीं खुला तो दूधवाले को चिन्ता होने लगी कि आखिर क्या बात है ? पहले तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि दरवाजा खोलने में इतना समय लगा हो. अक्सर एकही बार के डोरबेल बजने पर दरवाजा खुल जाया करता था, परन्तु आज बार-बार के डोरबेल बजाने, दरवाजे पर थपकी तथा आवाज देने पर भी दरवाजा क्यों नहीं खुला ? घर में चार लोग रहते है तो क्या चारों के चारों सदस्य गहरी नींद सोये हुए है या फिर कोई और बात है ? तमाम शंका-आशंकाओं से ग्रसित घनश्याम दूधवाला निराश होकर बिना दूध दिये वापस लौटने का मन बना लिया लेकिन वापस लौटने से पूर्व उसने पुरूषोत्तम सिंह के अगल-बगल के पड़ोसियों को यह बात बता दी कि तमाम आवाज और घण्टी बजाने के बाद भी दरोगा जी का दरवाजा आज नहीं खुल रहा है आप लोग जरा देखें क्या बात है.
उस दिन ठण्ड थोड़ी ज्यादा थी इसके बावजूद जो समय हो रहा था उस समय तक तो घर के किसी न किसी सदस्य को तो उठ ही जाना चाहिए था लेकिन क्या कारण है कि आज 9 बजने जा रहे है लेकिन दरोगा जी के घर का दरवाजा बन्द है और अन्दर से कोई आहट भी नहीं मिल रही है, इन सारी बातों से पड़ोसियों का माथा ठनका. वैसे तो दरोगा पुरूषोत्तम सिंह सुबह-सुबह थोड़ी देर के लिए मार्निंग वाक भी किया करते लेकिन क्या आज मार्निंग वाक के लिए नहीं निकलें, कुल मिलाकर दरवाजा न खुलना शक पैदा कर रहा था.
मूल रूप से जौनपुर जनपद के सरपतहां थानान्तर्गत भटौली गाॅव निवासी पुलिस विभाग के अवकाश प्राप्त दरोगा पुरूषोत्तम सिंह अपने पद से वर्ष 2005 में सेवानिवृत्त हुए थे. सेवानिवृत्त के बाद दरोगा जी अपने इकलौते पुत्र अश्वनी सिंह और पुत्रवधु रूपा सिंह तथा पत्नी दमयन्ती सिंह के साथ जौनपुर के शहर कोतवाली थाना क्षेत्र के रूहट्टा मोहल्ले के प्रतापपुर कालोनी में बने अपने निजी आवास में रहने लगे थे. पुत्र अश्वनी सिंह व पुत्र वधू रूपा सिंह अपने पैतृक गाॅव भटौली गये हुए थे. भटौली गाॅव में अश्वनी के बड़े ताऊ बिनोद सिंह के बेटे निशू को करन्ट लग गया था उसी को देखने के लिए अश्वनी अपनी पत्नी को लेकर शुक्रवार को दोपहर बाद ही निकल गया था. बेटे और बहु के चले जाने के बाद घर में पुरूषोत्तम सिंह और उनकी धर्मपत्नी दमयन्ती ही रह गयी थी. लेकिन इन दोनों में से किसी ने भी दूध लेने के लिए दरवाजा नहीं खोला तो पड़ोसियों का चिन्तित होना स्वाभाविक है उन्हें भी मामला कुछ संदिग्ध लगा. आखिरकार पड़ोसियों में से ही किसी एक ने इसकी जानकारी शहर कोतवाली प्रभारी संजय नाथ तिवारी को फोन द्वारा दे दी। सूचना पाते ही शहर कोतवाल श्री तिवारी अपने मातहत सरायपोख्ता चैकी प्रभारी विकास पाण्डेय को मौके पर पहुंचने हेतु आदेश देते हुए कहा कि वह कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुॅचे मैं भी थोड़ी देर में वहाॅ पहुॅच रहा हूॅ. आदेश पाते ही विकास पाण्डेय दो सिपाहियों के साथ अविलम्ब प्रतापपुर कालोनी पहुंच गये. वहाॅ पहुॅचकर उन्होंने भी आवाज लगायी लेकिन उनकी आवाज पर भी भीतर से कोई आहट व हलचल नहीं हुई तो उनका भी माथा ठनका. वह आगे किसी प्रकार की कोई कार्यवाही करते इस बीच शहर कोतवाली प्रभारी संजयनाथ तिवारी भी अपने दल-बल के साथ वहाॅ पहुॅच गये. आखिरकार थाना प्रभारी श्री तिवारी ने एक सीढ़ी का बन्दोबस्त कराकर सिपाही अमित मिश्रा को छत के सहारे घर के अन्दर जाकर दरवाजा खोलने का आदेश दिया. थाना प्रभारी श्री तिवारी के आदेश पर सिपाही अमित मिश्रा छत के सहारे घर के अन्दर प्रवेश किया. लेकिन वह जैसे ही छत से सीढ़ी के सहारे नीचे उतरा तो वहां का नजारा देख कर अवाक् रह गया. सिपाही अमित मिश्रा बाहर वाला मुख्य दरवाजा खोल दिया इसके बाद थाना प्रभारी श्री तिवारी एवं पुलिस के बाकी जवान घर में पहुॅचे तो उन्होंने भी जो कुछ देखा उसे देख दंग रह गया.
पुलिस हिरासत में आरोपी नीरज
घर की मालिकिन दमयंती सिंह का गला रेतकर हत्या कर दी गयी थी. उनका शव सीढि़यों के नीचे ही जमींन पर पड़ा हुआ था शव के पास खून-ही-खून दिखाई पड़ा. दरोगा पुरूषोत्तम का शव कमरे में बेड के नीचे औंधे मुॅह पड़ा हुआ था. पुरूषोत्तम का भी गला रेतकर हत्या की गयी थी. दमयंती के सर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किये जाने का भी घाव मिला. दो-दो हत्याएं एक साथ होने की घटना से समूचे पुलिस महकमें में हड़कम्प मच गया. संजयनाथ तिवारी शहर कोतवाली का कार्यभार कुछ ही दिनों पहले ग्रहण किया था पदग्रहण के बाद दोहरा हत्याकाण्ड पहली ऐसी घटना थी जिसका खुलासा उन्हें करना था, परन्तु फिरहाल तो घटनास्थल की समस्त औपचारिकता पूरा करने के साथ इस घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को देनी थी. श्री तिवारी ने तुरन्त दोहरे हत्या की सूचना जिले के पुलिस अधीक्षक डा0 आर0के0 स्वर्णकार, अपर पुलिस अधीक्षक नगर जगदीश शर्मा और क्षेत्राधिकारी नगर कुमार रणविजय सिंह को दे दी. घटना की सूचना पाते ही ये वरिष्ठ अधिकारी मयफोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गये. घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक था.
पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद पड़ोसियों से पूछ-ताछ की तो लगभग सभी ने इस हत्याकाण्ड से सम्बन्धित किसी प्रकार की कोई भी जानकारी होने से इन्कार कर दिया. मृत दरोगा का पुत्र अश्वनी सिंह व पुत्रवधू रूपा सिंह भी घर में मौजूद नहीं थे पड़ोसियों से ही पता चला कि वे दोनों कल ही अपने गांव गये हुए थे. थना प्रभारी श्री तिवारी ने अश्वनी से मोबाइल पर सम्पर्क कर सूचना देनी चाही तब उन्हें पता चला कि उसे अभी-अभी पड़ोसी से ही इस घटना की सूचना मिल चुकी है और वह रिश्तेदार तथा पत्नी के साथ घटना स्थल पर पहुॅच रहा है. पुलिस की जाॅच पड़ताल चल ही रही थी कि घटनास्थल पर अश्वनी सिंह अपनी पत्नी रूपा के साथ पहंुच गया. अश्वनी के साथ ताऊ के परिवार से जुड़े साथ आ गये थे.
अश्वनी की मौजूदगी में पुलिस ने घर की तलाशी ली तो अश्वनी ने बताया कि उसके पिता के गले में भी सोने की चेन थी तथा उसकी माताजी भी गले में सोने का चेन पहनती थी. लेकिन इस समय दोनों के गले से सोने की चेन नदारत थी. अश्वनी ने कमरे में मौजूद आलमारी को देखने के बाद बताया कि आलमारी से सोने की चार चूडि़यां, तीन अंगूठी व कान का सोने का एक जोड़ी टाप्स भी नहीं है इससे साफ जाहिर होने लगा कि हत्यारों का उद्देश्य घर में चोरी करने का रहा होगा लेकिन विरोध करने पर पुरूषोत्तम और उनकी पत्नी दमयंती को मौत के घाट उतार दिया गया होगा. बेटे और बहू दोनों की हालत पागलों जैसी हो गयी थी पुलिस अधीक्षक डा0 आर0 के0 स्वर्णकार ने घटनास्थल पर डाग स्क्वाॅयड व फिंगर प्रिन्ट एक्सपर्ट टीम को भी बुला लिया. डाग स्क्वाॅयड टीम लाश को सूंघने के बाद छत तक गयी और उसके बाद वापस नीचे आ गयी पुलिस को कोई विशेष सफलता नहीं मिली अलबत्ता फिंगर प्रिन्ट एक्सपर्ट टीम को जहाॅ-जहाॅ भी अंगुलियों के निशान मिले वहाॅ से उसे उठा लिया. घटनास्थल की समस्त औपचारिकताएं पूरी कर पुलिस ने दोनों लाशों को सील मोहर कर जिला पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. इस दोहरे हत्याकाण्ड के सम्बन्ध में मृतक पुरूषोत्तम सिंह के बेटे अश्वनी सिंह ने अचलाघाट निवासी दो सगे भाई अनुपम सिंह उर्फ लकी और अनुराग सिंह उर्फ पुप्पी पुत्र अरविन्द सिंह के खिलाफ रंजिश के कारण हत्या किये जाने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी. अश्वनी सिंह ने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को बताया कि लगभग महीने भर पहले अनुपम सिंह और अनुराग सिंह से कुछ बात को लेकर पिता जी से झगड़ा हुआ था और ये दोनों पिताजी से रंजिश रखते थे सम्भवतः रंजिश के कारण ही पिता की हत्या की हो. विदित हो पुरूषोत्तम सिंह और अनुपम सिंह के बीच हुए झगड़े में पुरूषोत्तम सिंह ने इन दोनों भाईयों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करायी थी जिसके परिणाम स्वरूप अनुपम सिंह और अनुराग सिंह को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी. घटना से तीन दिन पहले ही दोनों सगे भाई जेल से छूटकर बाहर आये थे इसलिए अश्वनी सिंह को पूरा शक था कि उसके पिता पुरूषोत्तम और मां दमयंती की हत्या में दोनों भाईयों  अनुपम सिंह व अनुराग सिंह की साजिश हो सकती है.
अदालत में पेशी के समय रूपा
     पुलिस अधीक्षक ने इस प्रकरण का पर्दाफाश हेतु एस0पी0सिटी जगदीश कुमार शर्मा को अलग-अलग टीमें गठित कर इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी शीघ्र सुलझाने का आदेश दे दिया. श्री शर्मा ने दोहरे हत्याकाण्ड के शीघ्र खुलासे के लिए पुलिस की तीन जाॅच टीमों का गठन कर दिया. पहली  टीम में शहर कोतवाल संजय नाथ तिवारी, दूसरी टीम में एस0ओ0जी0 प्रभारी बृजेश सिंह व तीसरी टीम में तेज-तर्रार थानेदार लाइन बाजार राजीव प्रकाश मिश्र को नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंप दी और आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस काण्ड का पर्दाफाश किया जाय. घटना के अगले ही दिन से पुलिस की तीनों जाॅच टीमें अपने-अपने स्तर से अभियुक्तों की टोह में लग गयी. जाॅच में जुड़ी पुलिस टीम में नामजद आरोपी अनुपम सिंह व अनुराग सिंह के बारे में पता किया तो वे दोनों भूमिगत मिले. दरअसल इस घटना के बाद नामजद दोनों आरोपियों को जैसे ही इस बात का पता चला कि अश्वनी सिंह ने बिना किसी ठोस आधार के उन दोनों को इस हत्याकाण्ड में नामजद कर दिया है तो वे दोनों घबरा गये और अपने को बचाने तथा निर्दोष साबित करने के लिए गुप्तरूप से जिले के नामी वकीलों से सम्पर्क कर राय मशविरा लेने लगे.
इस बीच चुनाव आयोग के आदेश पर प्रदेश सरकार ने जौनपुर के पुलिस अधीक्षक आ0के0 स्वर्णकार का स्थानान्तरण कर दिया और उनकी जगह तेज-तर्रार पुलिस अधीक्षक उपेन्द्र अग्रवाल जिले का नया पुलिस अधीक्षक बनाकर भेजा गया. चार्ज ग्रहण करते ही पुलिस अधीक्षक उपेन्द्र अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकाण्ड के पर्दाफाश हेतु पुलिस की तीनों जाॅच टीम पर दबाव बनाया. उनका आदेश रंग लाया शहर कोतवाल संजयनाथ तिवारी के नेतृत्व में गठित टीम कई पहलुओं पर विचार करने के बाद मृत दरोगा के बेटे अश्वनी और उसकी पत्नी रूपा सिंह के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया. सर्विलांस में लगाने के बाद पुलिस को उन दोनों की जो काल डिटेल मिली उससे पुलिस का माथा ठनक गया. दरसल पुलिस के हाथ जो काल डिटेल लगे थे उसके अनुसार अश्वनी की पत्नी रूपा सिंह घटनावाली सुबह तीन-चार बार कई-कई मिनट तक एक फोन पर बात की थी. पुलिस ने उस फोन नं0 के बारे में पता लगाया तो पता चला कि वह फोन नम्बर जिले के ही सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी ग्राम निवासी नीरज सिंह का था. काल डिटेल के अनुसार पिछले कुछ दिनों के बीच रूपा सिंह और नीरज सिंह के बीच लगभग तेरह सौ बार फोन पर बात किये जाने के प्रमाण मिले थे पुलिस के कालडिटेल से आभास हो गया कि इन दोनों में जरूर कुछ पक रहा होगा और उनकी बातें एक पे्रमी- पे्रमिका की तरह होती रही होगी.
      शहर कोतवाली प्रभारी संजय नाथ तिवारी ने नीरज सिंह के बारे में जानकारी इकठ्ठी करनी शुरू की तो उन्हें पता चला कि नीरज सिंह स्थानीय टी0डी0 काजेल में बी0ए0 द्वितीय वर्ष का छात्र है और ठीक पुरूषोत्तम सिंह के आवास के सामने स्थित एक मकान में एक कमरा किराये पर लेकर पढ़ाई कर रहा था. लेकिन पूछताछ के दौरान आस-पास के लोगों से पता चला कि नीरज सिंह हत्यावाले दिन से ही लापता है. नीरज सिंह के रूम के साथ रहने वाले लड़को से पूछताछ की गयी तो उसके साथी छात्रों ने पुलिस को बताया कि नीरज सिंह हत्याकाण्ड वाले दिन के बाद से पता नहीं कहाॅ चला गया और उन लोगों से भी कुछ नहीं बताया कि वह कहाॅ जा रहा है. लेकिन इस बीच वह हम लोगों से फोन करके यह जानकारी जरूर लेने का प्रयास करता कि दरोगा पुरूषोत्तम जी के यहाॅ क्या हो रहा है. पुलिस कब आती है ? क्या करती है ? आदि-आदि. छात्रों की बातों से श्री तिवारी को विश्वास हो गया कि इस हत्याकाण्ड में कहीं न कहीं से नीरज सिंह का हाथ हो सकता है. उन्होंने नीरज की तलाश तेज कर दी, आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गयी. सिटी स्टेशन के पास से नीरज सिंह को धर दबोच ही लिया. नीरज सिंह पुलिस को देखकर भागना चाहा, लेकिन श्री तिवारी ने उसे इसका मौका नहीं दिया और उसे गिरफ्तार कर शहर कोतवाली ले आये.
      नीरज सिंह से पूछताछ शुरू हुई तो पहले वह इन सारी घटनाआंे से अपने को अंजान बताते हुए पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन पुलिस भी आखिर पुलिस होती है. जब वह अपने पर आ जाती है तो अच्छे-अच्छे गुनहगार भी मुंह खोल देते हैं. नीरज सिंह के साथ ही कुछ ऐसा ही हुआ उसके साथ पुलिस ज्यादा सख्ती नहीं करनी पड़ी बल्कि मनोवैज्ञानिक तरीके से उसका कुछ ऐसा ब्रेनवास किया गया कि वह खुद ही एक-एक कर सारे घटना पर पड़े रहस्यों से पर्दा हटना शुरू कर दिया. पूछताछ के दौरान एस0ओ0जी0 प्रभारी बृजेश सिंह भी मौजूद थे. अन्ततः शहर कोतवाली प्रभारी श्री तिवारी की मीठी बोली ने अपना प्रभाव दिखाया और नीरज सिंह उनका पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘ साहब! मै सब कुछ बता दूंगा यह गलती मुझसे ही हुई है. यह सब मैने रूपा के कहने और उसके चक्कर में ही किया है. यह कहकर नीरज फफक-फफक कर रोने लगा.
श्री तिवारी का तीर ठीक निशाने पर लगा था उन्होंने नीरज को दिलासा देते हुए  कहा, ‘‘जवानी की दहलीज पर अक्सर लोगों से गलतियाॅ हो ही जाती हैं. तुम्हें जो पश्चात् हो रहा है यही बहुत है. तुम मुझे सारी बातें विस्तार से सिलसिलेवार बता दो, इसके बाद मैं तुम्हारे बारे में सोचूॅगा कि तुम्हें कैसे बचाऊ कि कानून तुम्हें कम से कम सजा दें.’’ आखिरकार नीरज सिंह ने पुलिस को जो कुछ भी बताया उसके अनुसार पुरूषोत्तम सिंह और दमयंती की नृशंस हत्या की सनसनी खेज कहानी सामने आयी वह इस प्रकार बतायी जाती है-
मूल रूप से जौनपुर  के सरपतहां थाना क्षेत्र के भटौली गाॅव निवासी पुरूषोत्तम सिंह 2005 में पुलिस विभाग से रिटायर होने के बाद शहर में बने अपने आवास में पत्नी दमयंती की और बहु रूपा सिंह के साथ सुख पूर्वक रह रहे थे. पुरूषोत्तम की बहु रूपा नाम के अनुरूप रूपवती थी, उसका रूप-लावण्य जो भी देखता उसकी सराहना किये बिना नही रहता लेकिन कहावत है कभी-कभी भोली सूरत के पीछे भी कुछ ऐसा छिपा होता है जिसके लोग कल्पना भी नहीं किये होते कुछ ऐसा ही रूपा के साथ भी था. रूपा का मायका जनपद के ही मडि़याहूॅ थाना क्षेत्र अन्तर्गत ककराही गाॅव में था रूपा के फूफा का घर इसी थाना क्षेत्र के कलवारी गाॅव में था. रूपा जब न तब अपनी बूआ और फूफा दीनानाथ उर्फ छेदी सिंह से मिलने उनके घर पहुॅच जाया करती. इसी आने जाने में रूपा की जान-पहचान रूपा के फूफा दीनानाथ उर्फ छेदी सिंह के पड़ोस में ही रहने वाले गोपाल सिंह के बेटे नीरज सिंह से हो गयी. नीरज के हाव-भाव रूपा को कुछ इस कदर भा गयी कि उसे मन ही मन में चाहने लगी यद्यपि उसकी शादी अच्छे घर-परिवार में हो चुकी थी इसके बावजूद वह मन में नीरज को बसा लिया. रूपा से नीरज की दोस्ती और जान पहचान हुई तो नीरज भी रूपा की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाया और रूपा के सौन्दर्य का दीवाना हो गया. फिर तो अक्सर दोनों में प्यार की बातें होने लगी. शादी हो जाने के कारण रूपा को पहले की तरह कहीं भी आने-जाने की आजादी नहीं थी अब तो उसे कहीं भी जाने के लिए अपने पति के साथ सास-श्वसुर से भी मंजूरी लेनी होती थी. लेकिन फिर वह कोई न कोई बहाना बनाकर जब मन करता नीरज से मिलने के बहाने अपने फूफा के गाॅव पहुॅच जाती.
एस0ओ0 संजयनाथ तिवारी अपने सहयोगियों के साथ
नीरज जौनपुर के टी0डी0 कालेज में बी0ए0 द्वितीय वर्ष का छात्र था. रूपा के कहने पर वह उसके मोहल्लें में उसी के घर के सामने किराये पर एक कमरा लेकर पढ़ाई का बहाने वही रहने लगा. समाज के सामने वह रूपा को बहन कहता. रूपा भी मुझे नीरज को अपना भाई कहती थी रक्षाबंधन पर्व पर रूपा नीरज को राखी भी बांधती पर उन दोनांे का यह रिश्ता मात्र छलावा था. नीरज भी भाई के रूप में रूपा को गिफ्ट भी देता था. चूॅकि रूपा के फूफा का पड़ोसी होने के नाते नीरज में अपना परिचय एक भाई के रूप में सामने रखकर पुरूषोत्तम सिंह के घर में प्रवेश पा गया था जबकि उसका असली मकसद तो कुछ और ही था. दोनों अक्सर सावधान रहते और कोई जरूरी बात होती तो फोन से बातें कर लिया करते.  नीरज भी किसी को शक न हो इसलिए रूपा के भाई के रूप में वह उसके घर का छोटा-मोटा काम भी कर दिया करता जैसे बाजार से सब्जी लाना या फिर गेहूॅ पिसवाना तथा और भी दूसरे काम जिससे दरोगाजी व उनकी पत्नी दमयंती को यह न लगे कि नीरज रूपा का भाई नहीं कुछ और है. 
      पुरूषोत्तम सिंह अपने बेटे अश्वनी सिंह को सिपाह मोहल्ले में मोटर पाट्र्सकी एक दुकान खुलवा दिये थे. नीरज अपने खाली समय में अश्वनी के दुकान पर ही जाकर कुछ समय बैठ जाया करता और उसे जीजा कहकर सम्बोधित कहता. जीजा-साले के नाते दोनों में हंसी-मजाक भी चलता. एक दिन तेजी से बरसात हो रही थी संयोग से उस दिन नीरज और अश्वनी दोनों मोटर पार्ट्स के दुकान पर ही मौजूद थे काफी देर बाद भी जब पानी नहीं निकला तो दोनों एक ही छाते में लगभग भीगते हुए घर आये. घर पहुॅचने से पहले अश्वनी ने मौसम को देखते हुए शराब की एक दुकान पर रूककर एक क्वाटर अंग्रेजी शराब खरीदकर गला तर किया, शराब का एक छोटा पैग अपने साले नीरज को भी पिला दिया. इसके बाद दोनों घर की ओर रवाना हुए. अश्वनी के घर पहंुचते ही रूपा ने तुरन्त दोनों को पहनने के लिए कपड़े दिये क्योंकि दोनों के कपड़े बरसात के कारण भींग गये थे. बरसात के साथ तेज आंधी और तूफान के चलते उस मोहल्ले की बिजली भी चली गयी थी रूपा ने अपने पति और नीरज के लिए चाय बना लाई. चाय रखकर रूपा ने नीरज की ओर देखते हुए कहा, भइया नीरज मोहल्ले में लाईट भी नहीं है रात में तुम कहाॅ अपने कमरे में जाओंगे तुम्हारे जीजा के लिए खाना बना रही हूॅ तुम भी उन्हीं के साथ खाना खाकर यहीं रात बिता लो. वैसे भी अभी बरसात पूरी तरह बन्द नहीं हुई है और बूॅदा-बाॅदी जारी है. रूपा की कहे अनुसार नीरज रात का खाना वहीं खाया और अश्वनी के साथ ही उसके कमरे में उसी के बेड पर सो गया. नीरज का वहाॅ रूकना और सोना तो एक बहाना था आॅधी रात के बाद जब घर के सारे लोग गहरी नींद के आगोश में थे तब नीरज और रूपा कमरे से बाहर अपनी कामवसना मिटाने में जुटे थे. विदित हो इस शादी के एक साल बाद भी रूपा ने एक बेटी की माॅ बन गयी थी जो इस समय 4 साल की थी. रूपा कि चार वर्षीया बेटी कली अपनी माॅ के कुकृत्यों से अंजान अपने पिता के बगल में गहरी नींद सोयी हुई थी. रूपा को नीरज से जो जिस्मानी सुख मिला था वह इससे पहले उसे अपने पति से भी नहीं मिला था इसलिए वह नीरज की एक प्रकार से दीवानी ही हो गयी.
      नीरज ने पुलिस को बताया उस दिन रूपा सबसे पहले उठ गयी थी. उसके बाद अश्वनी सिंह उठे और फ्रेश होने चले गये. तब रूपा मेरे पास पुनः आयी और मुझसे लिपट गयी. मैंने भी उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में जकड़ लिया और चुम्बनों की झड़ी लगा दी. फ्रेश होने के बाद मैंने चाय पी और अपने कमरे में चला गया. रूपा से मिले उस अलौकिक सुख से मेरा मन भी हमेशा रूपा ध्यान में खोया रहता. दिल यही कहता कि काश! रूपा हमेशा-हमेशा के लिए मेरे आगोश में होती, पर ऐसा सम्भव नहीं था.
कहते है इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपता मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक दिन मैं जब रूपा के घर गया हुआ था उस समय अश्वनी अपनी दुकान पर से और  दरोगा पुरूषोत्तम जी बाजार गये हुए थे. घर में रूपा और उसकी सास दमयंती ही थी. दमयंती रसोई में कुछ काम कर रही थी और रूपा अपने कमरे मंे थी. रूपा को पास में देख मेरा मन बेकाबू हो गया और मैं उसे अपनी दोनों बाॅहों मंे जकड़ कर उसे प्यार करने लगा लेकिन इसी बीच न जाने कैसे रूपा की सास दमयंती रसोई से निकलकर उस कमरे में आ गयी और हम दोनों को एक दूसरे के बाहों में समाये हुए आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. बस उसी दिन से हम दोनों के प्यार पर पहरा बैठ गया और मेरा उस घर में जाने की पाबन्दी हो गयी. इसके बावजूद चोरी-छिपे रूपा और नीरज की बातें मोबाइल पर होती रही तथा मौका लगने पर वे दोनों घर से बाहर मिलकर अपनी हसरतें पूरी कर लिया करते.
      दमयंती सिंह ने यह बात दरोगाजी से भी बता दी थी. परिणाम स्वरूप दरोगा जी ने मुझे धमकी दी थी कि यदि मैंने रूपा से मिला या उससे किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध रखा तो वह मुझे मार डालेंगे. अश्वनी सिंह को भी हम दोनों के नाजायज सम्बन्धों की जानकारी हो गयी थी इसलिए उसने भी मुझे धमकी दी और मुझसे किसी प्रकार का भी सम्बन्ध खत्म कर दिया.
      मेरा उस घर में आना-जाना पहले ही बंद हो चुका था. लेकिन मैं रूपा के बिना नहीं  रह सकता था हम दोनों का सहारा अब मोबाइल फोन ही था आखिर हम दोनों ने निर्णय ले लिया कि यदि हमें साथ रहना है तो पुरूषोत्तम और दमयंती को रास्ते से हटाना होगा. प्लान के अनुसार वारदात के हफ्ते भर पहले रूपा ने अपने घर के पिछले दरवाजे की चाभी मुझे दे दिया था. और कहा था कि जब मौका मिले मैं उसके सास-श्वसुर को ठिकाने लगा दूॅ, लेकिन मुझे ऐसा कोई मौका नहीं मिला. लेकिन संयोग से मौका मिल ही गया. इस दिन अश्वनी अपनी पत्नी रूपा को साथ लेकर अपने पैतृक गाॅव भटौली चला गया था. वहाॅ उसके ताऊ के लड़के को करन्ट लग गया था जिसे देखने के बहाने वह घर से दूर चली गयी. जाने से पूर्व रूपा ने मोबाइल से मुझे पूरी जानकारी दे दीं मैंने भी इस मौके का फायदा उठाना चाहा और पूरी प्लानिंग कर ली कि क्या कुछ कैसे करना है.
      मेरे पास एक रामपुरी चाकू था मैंने उसे दो दिन पहले ही धार करवाकर रख लिया था. उस दिन ठंड कुछ ज्यादा ही थी इसलिए 8-9 बजते-बजते मुहल्ले के अधिकांश लोग अपने-अपने घरों में रजाइयों में दुबक गये थे. रात 11 बजे के लगभग मैं दरोगाजी के बगल की छत पर चढ़ कर इनके छत पर आ गया. लेकिन शायद पड़ोसी के छत से रूपा की छत पर कूदने की आहट दमयंती सिंह को लग गयी और वे तुरन्त छत की तरफ जाने वाली सीढ़ी की ओर बढ़ी दूसरी ओर मैं उसी सीढ़ी से नीचे की ओर आ रहा था मुझे देखते ही वह कुछ बोलने को हुई तभी मैंने उन्हें धक्का देकर नीचे गिरा दिया और पास में पड़ी चारपाई की एक पाटी से दमयंती के सिर पर भरपूर वर कर दिया. उनके सर से खून की धार बह निकली और वह वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी, लेकिन तब तक दरोगाजी भी अपने कमरे से उठकर हमारी ओर आने ही वाले थे कि मैं तेजी से उनकी ओर बढ़कर उनपर भी भरपूर वार कर दिया. मेरे इस अप्रत्याशित वार से वे भी जमींदोज हो गये मैं पास में रखा अपना रामपूरी चाकू निकाल कर उनका गला रेत दिया. इतने में दमयंती को होश आ गया, तो मैं घबरा गया और अपनी चाकू से उनका भी गला रेत दिया. इसके बाद मैं कमरे में आया और चाभी लेकर आलमारी खोलकर चार सोने की चूड़ी, तीन सोने की अंगूठी, एक जोड़ी कान का टाफ्स व दोनों के गले में पड़ी सोने की चेन लेकर पुनः जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते से वापस लौट गया.
      चंूकि हमारे कपड़े पर काफी खून लगा था, इसलिए उस कपड़े पर पेट्रोल छिड़क कर रात में ही जला दिया और अधजले कपड़ें को नीचे अहाते में फेंक दिया और जेवर को घर में ही गाड़ दिया तथा हत्या में प्रयुक्त चाकू व पाटी भी दरोगा जी के घर पर ही छोड़ दिया.
      पुलिस को पहले ही घटनास्थल से चाकू व चारपाई की पाटी मिल चुका था, नीरज के बयान के आधार पर उसकी निशानदेही पर जमींन में गाड़ा गया जेवरात भी बरामद कर लिया. नीरज के बयान के आधार पर ही शहर कोतवाली प्रभारी श्री तिवारी रूपा को गिरफ्तार करने के लिए भटौली गांव पहुॅच गये विदित हो पुरूषोत्तम दम्पत्ति की हत्या के तेरहवें दिन उन दोनों की तेरहवीं के कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जो उनके पैतृक गाॅव में रखा गया था. पुलिस जब वहाॅ पहुॅची तो तेरहवीं में इकठ्ठा हुए तमाम लोगों के समक्ष रूपा के साजिश का पर्दाफाश करते हुए पुलिस हिरासत में लिया तो वहाॅ मौजूद सारे रिश्तेदार दंग रह गये.
      शहर कोतवाली में पूर्व मंे दर्ज अपराध संख्या 35 में कुछ नई धारायें भी जोड़ दिया गया. धारा 302,34,109,404,120बी आई0पी0सी0 के अन्तर्गत नीरज और रूपा दोनांे को पहले पत्रकारों के समक्ष पेश किया गया इसके बाद सम्बन्धित न्यायालय में प्रस्तुत किया गया जहाॅ से दोनांे को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. बाद में जिलाजज जगदीश्वर सिंह की अदालत में रूपा की जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई होनी थी. सुनवाई के बाद जिला जज ने यह कहते हुए रूपा की जमानत खारिज कर दी कि उसने अपने प्यार को चलते एक पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तार-तार किया है इसलिए वह जमानत की हकदार नहीं है.

लेबल:

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ