शनिवार, 30 मार्च 2013

हुस्न का जाल


प्रतीक चित्र
‘‘हुजूर मेरा नाम गंगाबाई हैं।’’ बलिष्ठ मगर भोले से दिखने वाले युवक के साथ आई प्रोढ महिला ने ए.एस.आई. रावत के सामने पेश होते ही सिर झुका कर दबे लहजे में बताया था।
‘‘मेरी ससुराल रामगढ में और मायका दीनापुर में है।’’ फिर उसने अपने साथ आए युवक की ओर इशारा किया था, ‘‘यह मेरा भतीजा कालिया है हुजूर।’’
‘‘कहो...’’ उसे घूरते हुए रावत ने पुिलसिया अन्दाज में जानना चाहा था, ‘‘किस लिए आए हो यहां.... ?’’
उस वक्त सुबह के दस ही बजे रहे होंगे और रावत अभी कुछ ही देर पहले आफिस में आया था।
‘‘हुजूर इसके बाप रामा की मौत हो गई है। उसके दाह-संस्कार में हिस्सा लेने ही में सुबह ससुराल से आई हूं।’’ गंगाबाई रो पड़ी। ‘‘ कहने को तो वह मौत ही है हुजूर, मगर मुझे शक है कि मेरा भाई मरा नहीं है, बल्कि किसी ने उसे मार डाला है।’’
‘‘क्या उसकी किसी से दुश्मनी थी।’’
‘‘बाहर तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, मगर उसकी अपनी बीबी से नहीं बनती थी और मुझे शक है कि उसी ने मेरे भाई को मारा है। वह मेरे भाई की दूसरी बीबी है।’’
‘‘क्यों.... ’’ रावत एकाएक उसकी बात का यकीन न कर सका था। ‘‘उस औरत को भला अपना सुहाग उजाड़ने की क्या जरूरत थी।’’
‘‘बताते हुए तो शर्म आती है हूजूर।’’ गंगाबाई का सिर पहले से भी ज्यादा झुक गया था, मगर सच को सामने लाने के लिए बताना ही होगा..... मेरी भाभी बदचलन और आवारा किस्म की औरत है हुजूर।’’
‘‘तुम यह कैसे कह सकती होे कि वह बदचलन और आवारा किस्म की औरत हैं।’’
रावत को उसकी बातों में कुछ-कुछ सच्चाई दिखाई देने लगी थी, ‘‘क्या इस बारे में कभी तेरे भाई ने तुम से कुछ कहा था?’’
‘‘कुछ दिन पहले जब वह मुझसे मिलने मेरी ससुराल आया था, तो उसने बातों ही बातों में कहा था कि मेरी भाभी बसंती अपने पड़ोसी संजय से बहुत ज्यादा हिल-मिल गई हैं।’’ गंगाबाई ने बताया था, ‘‘उसने यह भरी कहा था हुजूर कि उसे उन दोनों का मिलना पसन्द नही हैं।’’
‘‘यह संजय इस वक्त कहां मिल सकता है।’’
‘‘वह शहर में ठेकेदार राम मनोहर के पास मिस्त्राी का काम करता है हुजूर।’’ देर से खामोश खड़े कालिया ने पहली बार मुंह खोला था, ‘‘ पिछली बार जब वह गांव आया था तो उसने बताया था कि दूसरे मजदूरों के साथ वह भी रेलवे स्टेशन के पास वाले मैदान में झोपड़ी बनाकर रहता हैं।’’
‘‘तो क्या वह हर रोज वहां से तेरी मां से मिलने आया करता था।’’
‘‘वह हमारे गांव का ही है हुजूर।’’ उसकी बात तीर की मानिंद कालिया को चुभी तो थी, मगर वह अपनी मजबूरी से भी अन्जान नहीं था। अपमान को पी जाने में ही अपनी भलाई समझकर उसने बताया था, ‘‘अभी महीना भर पहले ही वह शहर गया है।’’
प्रतीक चित्र
‘‘अगर तेरा यह शक सही निकला कि तेरे भाई को मारा गया है।’’ रावत गंगाबाई की ओर देखता हुआ बोला था, ‘‘तो यह पता लगाना भी जरूरी है कि यह काम उसने अकेले ही किया था या उसके साथ कोई दूसरा भी था।’’ फिर उसने गंगाबाई को बोलने का मौका दिए बगैर ही कहा था, ‘‘तुम एक काम करो..... ’’
‘‘क्या हुजूर...... ’’
‘‘मुंशी जी के पास अपनी शिकायत दर्ज करवा दो..... मैं तेरे भाई के पोस्टमार्टम का इन्तजाम करता हूं।’’
उसी शाम करीब छः बजे पोस्टमार्टम के बाद डाक्टर ने रामा की लाश रावत की मौजूदगी में रामा के परिवार वालों को सौपते हुए कहा था, ‘‘रिर्पोट आपको चैथे दिन शाम को ही मिल सकेगी।’’
बसंती भी उस वक्त वहीं मौजूद थी। उसने रावत से बात भी करनी चाही थी, मगर रावत उसे अन्देखा करते आगे बढ़ गया था।
‘‘तेरा शक एकदम सही है।’’ चैथे दिन शाम को जब गंगाबाई कालिया को साथ लेकर रावत से मिलने गई्र थी, तो रावत ने उन्हें पोस्टमार्टम रिर्पोट के बारे में बताया था, ‘‘रामा को किसी कपड़े से गला घोटकर मारा गया था.... ’’
‘‘तो.... तो फिर..... ’’ गंगाबाई सच्चाई जानते ही उत्तेजित हो गई थी, ‘‘उस कुलटा को हिरासत में ले लीजिए हुजूर।’’
‘‘क्या तुम बसंती की बात कर रही हो?’’
‘‘हां.... उसी ने तो मारा है, मेरे भाई को.... ’’
‘‘फिलहाल मेरे पास उसके खिलाफ कोई सबूत नही है और सबूत के बिना किसी को भी दोषी करार नहीं दिया जा सकता।’’ रावत ने समझाया था, मेरे आदमी छानबीन कर रहे है। जैसे ही हमें किसी के भी खिलाफ कोई सबूत मिल गया। उसी वक्त हम उसे हिरासत में ले लेगें।’’
रावत के बाहर आते ही जग्गू उनके पास पहुंच गया। जग्गू को देखते ही रावत ने चहकते हुए पूछा, ‘‘क्या खबर लाए हो?’’
‘‘अपने खसम का दाह-संस्कार करने के बाद वह पेट दर्द का बहाना बनाकर अस्पताल में दाखिल हो गई है।’’
‘‘यह तो कोई खबर नही है?’’
‘‘खबर है..... इसलिए तो बताने आया हूं।’’
बिना कुछ कहे ही रावत सवालिया निगाहों से उसकी ओर देखता रहा।
‘‘उसी रात ग्यारह बजे वह अपने बिस्तर से उठ कर कहीं चली गई थी।’’ जग्गू ने रहस्यमय अन्दाज में बताया था, ‘‘और सुबह पांच बजे तक वापस नही आई थी..... यह बात सिर्फ उसी रात की नही हैं..... वह रात को अपने बिसतर से इसी तरह गायब रहती है।’’
‘‘अब यह खबर बनने लगी है।’’ रावत ने सिगरेट सुलगाने के बाद जिज्ञासा भरी निगाहें उसके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा, ‘‘कहां जाती है वह रात को.... ’’ फिर उसने अपने सवाल का जबाब भी खुद ही सवालिया अन्दाज में दे डाला, ‘‘कहीं वह अपने किसी यार के साथ रंगरलियां मनाने तो नही जाती है?’’
‘‘मेरा भी यही ख्याल है कि वह अपने जिश्म की आग बुझाने के लिए ही रात भर अपने बिस्तर से गायब रहती है।’’
‘‘तूने उसका पीछा किया था?’’
‘‘नही..... ’’ जग्गु ने उसका पीछा न करने की वजह बताई थी, ‘‘एक तो गांव का मामला है साहब, दूसरे अपनी पोल खुल जाने के डर से वह अपने यार से मिलकर मेरी भी बोली बंदकर सकती है।’’ जग्गू धीरे से हंसा था, ‘‘और मैं अभी मरना नही चाहता हूं।’’
‘‘ठीक है, तुम जाओ।’’ सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश लेते हुआ रावत उठ खड़ा हुआ, ‘‘ अब मैं देखता हूं कि मुझे क्या करना है।’’
उसी रात दस बजे के आस-पास रावत मेकअप में पहले अस्पताल जाकर इस बात का यकीन कर लिया कि बसंती अपने बिस्तर पर ही है। फिर वह अस्पताल के बाहरी गेट के पास ऐसी जगह छुप गया जहां से अस्पताल के अन्दर-बाहर आने-जाने वालों पर नजर रखी जा सकती थी।
प्रतीक चित्र
करीब आधे घंटे बाद ही उसे हल्की सी रोशनी में एक परछाई सी बाहर आती हुई दिखाई दी। रावत सावधान हो गया। जब वह परछाई गेट के पास पहंुची तो रावत को उसे पहचानने में जरा सी भी दिक्कत नही हुई। वह बसंती ही थी, गेट पर रूककर बंसती ने पलटकर पीछे के ओर देखा। जब उसे इस बात का यकीन हो गया कि उसका पीछा नही किया जा रहा है, तो वह तेज कदमों से एक तरफ बढ़ने लगी।
कुछ ही देर चलने के बाद बंसती एक झोपड़ी में दाखिल हो गई। इस बार उसने पलटकर देखने की भी जरूरत नही समझी, मानो उसे यकीन था कि न तो उस पर किसी को शक ही था और न ही कोई उसका पीछा कर रहा था।
रावत झोपड़ी के बाहर ही रूककर अन्दर से आने वाली आवाजों को सुनने की कोशिश करने लगा।
‘‘तुम से कितनी बार कह चुका हूं.... ’’ झोपडी में जलने वाला दीपक बुझा दिया गया था, भीतर से किसी मर्द की दबी हुई आवाज उभरी थी, ‘‘ .... कि यहां मत आया करो, अगर किसी को मामूली सा भी शक हो गया तो हमारा सारा खेल ही बिगड़ जाएगा।’’
‘‘अगर किसी को शक हो भी गया तो कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा।’’ बसंती ने उसे दिलसा दिया था।
‘‘मुझे तो वह पुलिस वाला..... ’’
रावत समझ रहा था कि यह बात उसी के बारे में कही जा रह थी।
‘‘वह भी आशिक मिजाज लगात है। अगर वह मुझे पहले मिल गया होता, तो उस बुड्ढे की बोली मैं उससे ही बंद करवाती..... अब भी कुछ नही बिगड़ा है। कल ही उससे मिलकर उसे ऐसे जाल में फंसा लूंगी कि साला सारी छानबीन करवाना भूलकर कुत्ते की तरह मेरे कदम चूमता फिरेगा।’’
‘‘और अगर वह न माना तो क्या होगा?’’
‘‘तब क्या होगा..... ’’ बसंती उसकी बातों से डरी नही थी, ‘‘यह तो मुझे नही मालुम है। हां यह जरूर बता सकती हूं कि अब क्या होगा..... ’’
‘‘अब..... अब क्या होगा?’’
‘‘वही..... ’’ बसंती चहकी थी, ‘‘जो हर रात को होता है।’’
इससे कुछ देर बाद ही चारपाई की चरमराहठ, बंसती की सिसकारियों के साथ युगलबंदी करने लगी थी। यह सुनकर रावत मुस्करा उठा।
अगले दिन शहर से लेडी पुलिस बुलाकर रावत ने बसंती और कालिया को हिरासत में ले लिया। पूछताछ के दौरान पहले तो दोनों अपने आप को बेगुनाह बताते रहे। लेकिन जब रावत ने पुलिसिया रूख अपनाया तो उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अगर गंगाबाई को उन पर शक न हो गया होता तो उम्र भर उनके गुनाह पर से पर्दा न उठ सका होता।
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हवस का भूत


प्रतीक चित्र

कमल ने धड़कते दिल और उत्तेजना के अतिरेक से, कांपते हाथों से रमिया का हाथ पकड़ लिया जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो वे रोमांचित हो उसे अपनी तरफ खींचने लगे। झिझकते हुए रमिया उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें महसूस होने लगी। कमल ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरते हुए अपनी तरफ किया और उसकी बड़ी-बड़ी आॅखों में झांकने लगे। रमिया ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर छूटने की कोशिश नहीं की। अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पाकर कमले ने अपने कपकपाते ओठ उसके उभरे कपोल पर रखा दिए, तब भी रमिया ने कोई विरोध नहीं प्रदर्शित किया तो उन्होने उसे एक झटका देकर बिस्तर पर गिरा अपने आगोश में ले लिया। एक हल्की सी सीत्कार रमिया के मंुह से निकल गई।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो कमल की नींद खुल गई। देखा तो बिस्तर पर वे और उनकी तनहाई के अलावा उनके साथ कोई नहीं था। वे बुदबुदा उठे..... अभी ही आना था किसी को.... थोड़ी देर और नही रूक सकते थे। वे घड़ी देखकर मुस्करा दिए। सुबह हो चुकी थी। दोबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठकर दरवाजा खोल दिया। सामने सोनू खड़ा था अभिवादन करते हुए उसने पूछा, ‘‘अंकलजी, आंटी कब तक आएंगी? मम्मी पूछ रही है।’’
‘‘दो महीने बाद’’ कमल ने बताया।
‘‘थैक्यू अंकल’’ कहते हुए सोनू चला गया तो कमल भी अंदर आ गए।
जबसे उनकी पत्नी ललिता, लंबे समय से मायके गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे। शादी के दस वर्षो बाद भगवान ने उनकी सुनी थी। उनकी पत्नी गर्भवती हुई थी। वे कोई जोखिम नही उठाना चाहते थे इसलिए दो महीने पहले ही ललिता को मायके छोड़ आए थे। पिछले माह ही एक बालक ने जन्म लिया था। जच्चा-बच्चा के कमजोर होने के कारण उनकी सास ने फरमान जारी कर दिया था कि बच्चे के तीन महीने का होने तक वे ललिता को नहीं भेजेंगी। फलस्वरूप कमल इस वक्त ‘‘फोसर््ड-बॅचलर’’ का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
पिछले कुछ दिनों से उनका चंचल मन अपने घर काम करने वाली रमिया पर आया हुआ था। युवा रमिया के आकर्षक नयन-नक्श और गदराए यौवन ने उनके रातों की नींद और दिन का चैन हराम कर दिया था। अब जब उनकी पत्नी भी साथ नहीं थी, रमिया का शरीर पाने के लिए वे अधीर हो उठे थे। कमल जानते थे रमिया बहुत गरीब है। कई घरों में काम कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है। आदमी मतकमाउ है और पत्नी की कमाई पर ऐश करना चाहता है। पैसा ही रमिया की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे रमिया को पाया जो सकता है। कमल का सोचना था कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान-चरित्रा डगमगा जाता है फिर रमिया की क्या औकात कि उन्हें हाथ न रखने दे.... हालांकि ललिता के रहते कभी उन्होंने रमिया की ओर आॅख उठाकर भी नहीे देखा था।
प्रतीक चित्र
मन ही मन कोई शातिर योजना बनाकर वे रमिया के आने की प्रतिक्षा करने लगे। जैसे ही रमिया आई वे अपने बिस्तर पर लेट गए। रमिया अंदर जाकर काम करने लगी। जब कमल को लगा कि अब काम खत्म होने को होगा उन्होंने आवाज दी, ‘‘रमिया....जरा सुनो तो....’’
‘‘जी बाबूजी....’’ रमिया साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती आ खड़ी हुई।
‘‘काम हो गया?’’
‘‘जी बाबूजी....’’
‘‘इधर आओ मेरे पास’’ कमल ने कहा।
रमिया उनके सिरहाने आकर खड़ी हो गई, ‘‘क्या बात है बाबूजी?’’
‘‘सिरदर्द हो रहा है थोड़ा दबा सकती हो?’’ कमल ने कापती आवाज में पूछा।
रमिया घबरा गई, ‘‘मैं.....?’’
‘‘हां भाई! अब घर में तो कोई और नहीं है’’ कमल ने विवशता दर्शाते हुए कहा,
झिझकते हुए रमिया उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने-सहलाने लगी। रमिया के ठण्डे कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही कमल का पूरा शरीर उत्तेजना से ऐसे झनझनाने लगा जैसे विद्युत प्रवाहित बिजली का नंगा तार छू गया हो। टूटते हुए शब्दों में सहानुभूति घोलते हुए वह पूछने लगे, ‘‘रमिया तुम इतनी मेहनत करती हो फिर भी बड़ी मुश्किल से गुजारा होता होगा न?’’
‘‘क्या करें बाबूजी मेरा मरद काम नहीं करता इसलिए तंगी होती है।’’ रमिया बोली।
‘‘तुम्हारा आदमी काम क्यों नहीं करता? क्या बीमार रहता है?’’ कमल ने पूछा।
‘‘वह तो खूब हट्टा कट्टा-मुस्टंडा है पर.....अब क्या बताउं बाबूजी नहीं बता सकती....’’ सकुचातें हुए रमिया चुप हो गई।
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ कमल ने पूछा।
‘‘एक हजार रुपए..... बस बाबूजी?’’ रमिया कमल के सिर से हाथ हटाते हुए बोली।
कमल ने तत्परता से कहा, ‘‘थोड़ा और दबा दे, अच्छा लग रहा है। औरत के हाथों में तो जादू होता हैं। एक बात बताओ रमिया! इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?’’
रमिया खामोश रही तो कमल फिर बोले, ‘‘अगर इतने समय और काम में तुम्हें पंद्रह सौ रुपए मिलने लगे तो कैसा लगेगा?’’
रमिया मुस्करा उठी, ‘‘लगेगा तो अच्छा पर कौन देगा?’’
‘‘मैं दूगा’’ घड़कते दिल से कमल ने कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया, ‘‘अगर तुम चाहोगी तो मैं इससे भी ज्यादा दे सकता हॅंू।’’
प्रतीक चित्र
रमिया उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी। इस अप्रत्याशित दया की क्या वजह हो सकती है? उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें बाबूजी?’’
कमल, रमिया को अपनी ओर खींचते हुए बोले, ‘‘रमिया मैं तुम्हारे सारे दुख दूर कर दूंगा, तुम्हारी गरीबी भी....तुम्हें गहने-कपड़ों से लाद दूंगा...बस मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार चाहिए....तुम्हारे साथ थोड़ी मौज-मस्ती चाहिए।’’
‘‘बीवीजी को पता लगेगा तो?’’ रमिया ने शंका व्यक्त की।
‘‘कैसे पता लगेगा? ऐसी बात कोई किसी को बताता है क्या?’’ कमल ने आश्वासन दिया। उनकी सांसे और शब्द बेकाबू हो चले थे।
‘‘मैं तैयार हूं पर मेरी एक शर्त है....’’ रमिया ने कहना चाहा, तो कमल ने उसे बोलने नहीं दिया, ‘‘अरे तुम तैयार हो तो.... मुझे तुम्हारी एक क्या सभी शर्ते मंजूर हेैं, बस मुझे खुश कर दिया करो।’’
‘‘पहले मेरी बात तो सुन लो बाबूजी....’’ रमिया थोड़ा रूखे लहजे से बोली।
कमल के सब्र का बांध टूट रहा था, वह उखडते स्वर में बोले, ‘‘चल जल्दी बता अब मुझसे रहा नहीं जाता....’’
‘‘दरअसल मेरे मरद को कोई बीमारी नहीं है...वह भी आपके समान आशिक मिजाज है। उसका दिल भी एक थाली से नही भरता.... वह यहां-वहां ताक-झांक करता रहता है। मुझे तो लगता है, सारी मरदजात एक सी होती है।’’
रमिया की बात से कमल खिसिया गए पर उन पर तो हवस का भूत सवार था। इसलिए वह कड़वी बात हजम करते बोले, ‘‘चल छोड़ कहा की बात ले बैठी, क्यों रंग में भंग कर रही है?’’
अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करते हुए रमिया बोली, ‘‘पहले मेरीे बात तो सुन लो। मेरी एक ही शर्त है.... जिस दिन आप मुझे बुलाएगें, उस दिन बीवीजी को मेरे मरद के पास भेजना पड़ेगा।’’
कमल तैश में आते हुए बोले, ‘‘जानती हो यह क्या कह रही हो तुम?’’
‘‘अदला-बदली की बात कह रही हूॅ। आपको क्या लगता है हम गरीबों की इज्जत इतनी सस्ती हो ती है कि कोई भी खरीद ले। अरे आप तो पांच सौ ज्यादा देने को कह रहें हैं। मैं आपको हजार रुपए महीना दंूगी.... इस हाथ दे उस हाथ ले.... क्यों बाबूजी?’’
कमल डांटते हुए बोले, ‘‘कैसी बातें कर रही है.... तुम छोटे लोगों की यही आदत खराब होती है कि अपनी औकात भूल जाते हो।’’
रमिया पूरी तरह से अलग हो आॅख दिखाते हुए बोली, ‘‘मैं तो आपकी औकात परख रही हूॅ बाबूजी!’’
कमल की इश्क का भूत अब पूरी तरह से उतर चुका था। ठंडा पसीना पोंछते, खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की तर्ज पर कभी अपने को कभी जाती हुई रमिया को देख रहे थे।

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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

‘‘जिसके प्यार में पागल, वह गैरों के बांहों में झूले’’



प्रतीक चित्र
यौवन के व्रक्ष पर खूबसूरती के फूल खिले हो तो मंजर किसी कयामत से कम नहीं होता। यही हाल था दीपिका का। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार कर यौवन की बहार में कदम रखा तो खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
वह आईना देखती तो जैसे आईना भी खुद पर गर्व करता। उसकी सांस थम जाती और वह दुनिया में खूबसूरती के उदाहरण चांद को भी नसीहत दे डालता, ‘‘ऐ चांद, खुद पर न कर इतना गुरूर। तुझ पर तो दाग है। मगर मेरे वजूद में जो चांद सिमटा है, वह बेदाग है।’’
दीपिका मुस्कुराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, ‘‘ऐसे मत मुस्कराया कर दीपिका, अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान से चला जाएगा। ’’
दीपिका खूबसूरत तो थी ही, साथ ही अच्छे संस्कार उसकी नस-नस में बसे थे। उसका व्यवहार कुशल होना, आधुनिकता और हंसमुख स्वभाव खूबसूरती पर चांद की तरह थे। दीपिका सयानी हो गई है। यह अहसास होते ही उसके मां इस अमानत को योग्य हाथों में सौंप देना चाहते थी। क्योंकि जमाना भी खराब है, फिर यह उम्र भी ऐसी है कि कदम भटकते देर नही लगती। इसलिए वह कहती, ‘‘कोई अच्छा सा घर-वर देखकर इसके हाथ पीले कर दो।’’
उसके पिता आधुनिक विचारों के थे। वह समय के साथ चलना चाहते थे। शुरू-शुरू में जब पत्नी कहती तो वह बात हंसकर टाल जाते थे, लेकिन जब दीपिका की मां कुछ अधिक ही गले पड़ने लगी तो वह उसके लिए घर-वर देखना शुरू कर दिया। जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाई और सूर्यकान्त से उसकी शादी कर दी।
मधुर मिलन की रात्रि में सूर्यकान्त दीपिका के हुश्न और इष्क में इस तरह दीवाना हुआ कि उसे दीपिका की पलभर की जुदाई बर्दाश्त नहीं हो पाती। दोंनों ने महीनों खूब मौज-मजा किया। इस दौरान घूमने-फिरने और प्रेमके सिवा उनकी दुनिया में और कुछ भी नहीं था।
यूं ही समय खिसकता रहा काफी दिनों बाद भी जब सूर्यकान्त ने अपना काम-धाम नहीं शुरू किया तब घरवालों ने उसे काम करने को याद दिलाया तो वह जैसे नींद से जागा और पुनः अपने काम में लग गया। दीपिका भी ससुराल में आज्ञाकारी बहू की तरह दिन बिताने लगी। कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक चला। धीरे-धीरे घर की जिम्मेदारियां दीपिका को भारी लगने लगी फिर तो वह उदास सी रहने लगी। पत्नी की उदासी जब सूर्यकान्त से नहीं देखी गई तो एक दिन पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है दीपा, आजकल तुम कुछ अधिक ही उदास रहती हो?’’
सूर्यकान्त के पूछने पर दीपिका कहने लगी, ‘‘मेरा तो घर के अन्दर दम घुटने लगा है। मैं इतने प्रतिबन्ध में नहीं रह सकती हूँ।’’
‘‘प्रतिबन्ध……’’ सूर्यकान्त ने चौंकते हुए कहा, ‘‘प्रतिबन्ध कैसा दीपा? यह तो हर लड़की के साथ होता है। ससुराल में बड़ो का कहना मानना तो तुम्हारा फर्ज है, फिर तुम्हें किसी प्रकार का कोई रोक तो नहीं है, ऊपर से मैं भी तो तुम्हें घुमाता-टहलाता रहता हूँ। बहुत ज्यादा घर से बाहर रहना अच्छी बात थोड़े होती है।’’
सूर्यकान्त के समझाने पर दीपिका चुप हो गई, पर अब वह ज्यादातर अपने मायके में ही रहने लगी थी। जब वह ससुराल आती तो सूर्यकान्त से अनाप-सनाप चीजों की फरमाइश कर देती। इसी दौरान एक दिन दीपिका ने बीयर पीने की इच्छा जाहिर करते हुए बताया कि बीयर पीना तो उसका शौक है। तब सहसा सूर्यकान्त को दीपिका कीबात का यकीन ही नहीं हुआ।
सूर्यकान्त दीपिका को अपनी जान से भी अधिक चाहता था। उसके बीयर पीने की शौक सूर्यकान्त को नागवार लग रही थी, फिर भी पत्नी के प्रेम में अंधा सूर्यकान्त दीपिका का यह शौक भी पूरा करने लगा। जब कभी भी दीपिका बीयर पीती थी तब वह सूर्यकान्त के आगे खुली किताब हो जाती थी और मजा लेकर बताती थी कि उसके कितने ब्वायफ्रेन्ड थे। किन-किन के साथ वह घूमती और कहां-कहां जाती थी।
हालांकि पत्नी की बात सूर्यकान्त को बुरी जरूर लगती थी, पर यह सोचकर वह कुछ भी नहीं कहता था कि यह सब उसने शादी से पहले किया था। वह प्यार से दीपिका को समझाता, ‘‘देखो दीपा! अब तक तुम क्या करती थी इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है, पर अब तुम शादीशुदा हो इसका भी ध्यान देना।’’
प्रतीक चित्र
इस पर दीपिका नशे में झूमते हुए कहती, ‘‘छोड़ो यार! मुझे तो उन सब के साथ धुमने-फिरने, मौज-मजा करने में बहुत आनन्द आता है। तुम तो बस अब भी पुराने ख्यालात के लगते हो……’’
समय का चक्र चलता रहा सूर्यकान्त दीपिका को यह सोचकर कम ही मायके जाने देता था कि कही वह अपने पुराने यार-दोस्तों के साथ फिर से घूमना टहलना शुरू न कर दे। पति के बदले रवैये से दीपिका परेशान सी हो उठी थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आखिर कुछ सोच कर वह भी सूर्यकान्त पर अपने मां-बाप व भाई से अलग रहने के लिए दबाव बनाने लगी। लेकिन जब सूर्यकान्त परिवार से अलग रहने के लिए साफ मना कर दिया तो दीपिका सूर्यकान्त से रूठकर मायके चली गई।
दीपिका की नाराजगी से सूर्यकान्त अन्दर ही अन्दर टूट गया था। वह उसे वापस घर लाने का काफी प्रयास भी किया लेकिन सफल नहीं हुआ और एक दिन बहन की तबियत खराब होने की जानकारी मिली तो दीपिका बहन के पास दिल्ली चली गई।
काफी मान-मनौवल के बाद रूठकर दिल्ली गई दीपिका सूर्यकान्त के पास आ गई। एक दिन बीयर पीने के बाद उसने एकान्त की क्षणों में बताया था कि दिल्ली में जीजाजी उसकी हर इच्छा पूरी करते थे। वहां एक दिन में हम सब तीन-तीन बोतल रम पी जाते थे। वाह-वाही झाड़ते हुए उसने यह भी बता दिया कि दिल्ली में रहने के दौरान वह कभी जीजा के साथ तो कभी उनके भाई के साथ तक सो जाती थी तो सूर्यकान्त का खून खौल उठा, भला कोई मर्द यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी बीबी दूसरे के साथ सोई थी फिर भी सूर्यकान्त ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।
अभी कुछ ही दिन बीते थे कि दीपिका का जीजा दिल्ली से इलाहाबाद आया । तब पति से जिद कर दीपिका ने एक दिन अपने जीजा को खाने पर बुलवाया। उस दिन सूर्यकान्त किसी जरूरी काम से कुछ देर के लिए बाहर चला गया। वापस लौटा तो कमरे में दीपिका अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पड़ी थी। सूर्यकान्त के वापस आते ही दोंनों अलग हुए और अपने कपड़े ठीक कर बाहर निकल गए। अपनी आंखों से पत्नी का असली रूप देखकर सूर्यकान्त को अपने आप से घीन आने लगी और वह सोचने लगा कि जिसके प्यार में वह पागल है, वह उसकी बीबी होते हुए भी गैरों की बांहों में झूलने के लिए बेताब है। गुस्से में आकर उसने दीपिका को कई थप्पड़ रसीद कर दिया।
अब तक दीपिका के प्रेम में दीवाना सूर्यकान्त दीपिका से घ्रणा करने लगा था। वह सोचता था कि दीपिका कभी नहीं सुधरेगी और हमेशा ही अपने हुश्न के जाल में उलझा कर नए-नए लोगों के साथ मौज-मस्ती करती रहेगी। अन्ततः सूर्यकान्त को जब यकीन हो गया कि कि दीपिका उसकी बन कर नहीं रह सकती, वह किसी अन्य की बाहों में उसे नहीं देख सकता था। तब सूर्यकान्त ने हमेशा-हमेशा के लिए दीपिका को दुनिया से विदाकर देने का निर्णय ले लिया।
एक दिन रात में सूर्यकान्त बहाने से दीपिका को सूनसान स्थान पर ले जाकर गोली मार दी। अगले दिन सुबह-सुबह जल्दी उठ कर सूर्यकान्त ने दरवाजे पर ताला लगाया फिर चला गया। दोपहर बाद घर लौटा तो यहां-वहां दीपिका के बारे में पता लगाने लगा। इसी क्रम में उसने दीपिका के मायके भी पता किया। अन्ततः दीपिका को खोजने का नाटक करता गुमसूदगी दर्ज करवाने खुद थाने पहुंच गया। लेकिन पुलिस की तेज-तर्रार नजरो व सूझ-बूझ से सूर्यकान्त की चालाकी काम नहीं आई और उसने खुद अपना अपराध कबूल कर लिया।

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