गुरुवार, 7 मार्च 2013

‘‘देह धर्म से मजबूर अनुराधा’’


महाराष्ट्र के सोलापुर की अवैध सम्बन्ध हत्या कथा
महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित बिट्ठलनगर थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर गणपतराय जाधव रात्रि गश्त हेतु सिपाहियों की ड्यूटी लगाने के बाद एक आपराधिक मामले की तफ्तीश हेतु जाने के लिए उठे ही थे कि खून से नहाई हुई एक औरत आकर उनके सामने गिर पड़ी और हाहाकार करने लगी, ’मुझे बचा लीजिए साहब ...... मैं आपके पैर पकड़ती हूॅ, मेरी जान बचा लीजिए, वरना वह मुझे मार डालेगा.....’
इंस्पेक्टर जाधव कुछ समझ पाते, इससे पहले ही थाना प्रांगण में शोर सुनाई पड़ा. उन्होंने बाहर निकलकर देखा तीन चार सिपाही एक अधेड़ को काबू में करने का प्रयास कर रहे थे, पर वह छूटने के लिए बुरी तरह झटकता-पटकता हुआ चींख रहा था, ’मुझे छोड़ दो .... तुम लोग नहीं जानते, इसने मेरे घर को नरक बना दिया है.... यह औरत नहीं वेश्या है..... मैंने इसको इज्जत दी फिर भी यह नालों में लोटती रही .......... इसने मेरे मुंह पर कालिख पोत दी है. मैं कभी इसको जिन्दा नहीं छोड़ूंगा.’
’बकवास बन्द करो.’ बरामदे में खड़े इंस्पेक्टर जाधव दहाड़ उठे, ’हवलदार पगारे इसके हाथ से कुल्हाड़ी छीन लो और इसे पकड़कर मेरे पास ले आओ.’
पलक झपकते ही दो सिपाहियों ने आगन्तुक अधेड़ को दबोच कर इंस्पेक्टर जाधव के कमरे में पहुॅचा दिया. श्री जाधव ने गुस्से से घूरते हुए तेज आवाज में पूछा, ’तुम्हारा नाम क्या है ?’
’विद्याधर बापट.’ अधेड़ ने अपना नाम बताते हुए कहा, ’मैं यहाॅ से दस कदम दूर बापट वादी में रहता हूॅ इंस्पेक्टर साहब. सारे मुहल्ले में मेरी इज्जत है......’
’वह तो तुम्हारी करतूत से ही पता चल जाता है.’ इंस्पेक्टर जाधव ने बुरा-सा मुंह बनाकर फर्श पर पड़ी रक्तरंजित औरत की ओर इशारा करते हुए पूछा, ’यह तुम्हारी कौन है ?’
उस औरत की ओर देखते ही विद्याधर बापट की आंखों में जाने कितनी नफरत झलक उठी. तिलमिलाकर वह बोला, ’अब तो यह बताते हुए भी शर्म आती है साहब कि यह मरेी पत्नी अनुराधा है. मैं इसे कितने हौंसले से ब्याह कर लाया था.... मैंने इसे हमेशा सर-आॅखों पर बैठाया था, साहब..... गहने, कपड़ों से लाद दिया था इसे, फिर भी यह मेरी नहीं हो सकी. कुलटा जो है...’
’पहेलिया बुझाने की जरूरत नहीं है.’ इंस्पेक्टर जाधव ने थोड़ा नरम पड़कर कहा, ’सिर्फ काम की बातें कारो और साफ-साफ बोलो अपनी बीवी को इतनी बेरहमी से क्यों मारा ? खबरदार अगर जरा भी झूठ बोलने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.’
’नहीं साब, मैं एक शब्द भी झूठ नहीं बोलूंगा. आप चाहे तो मेरे मुहल्ले के बच्चे-बच्चे से पूछ लें, सब चटखारा ले-लेकर इसकी चर्चा करते हैं. आखिर मैं कब तक बर्दाश्त करता.’’
फिर विद्याधर ने अपनी पत्नी के बारे में जो सनसनीखेज जानकारियां दी, वे सचमुच चैंकाने वाली थी. श्री जाधव ने अनुराधा की ओर देखा तो वह अभी तक निश्चेष्ट पड़ी हुई थी. श्री जाधव को आशंका हुई कि शायद अत्याधिक रक्तस्त्राव के कारण वह बेहोश हो गई है. उन्होंने उसके चेहरे पर छिड़कने के लिए तुरन्त एक सिपाही से पानी लाने को कहा और उठकर स्वयं जल्दी से उसको सीधा करने लगे तो चैंक पड़े, अनुराधा मर चुकी थी.
यह देखते ही श्री जाधव ने एक सिपाही को कुछ इशारा किया तो विद्याधर दर्द भरी आवाज में बोला, ’घबराइए नहीं साहब, मैं भागूंगा नहीं, लेकिन आपसे एक प्रार्थना है, इस सारे झगड़े का जड़ कैलाश है, आप उसको गिरफ्तार कर लीजिए वरना वह भाग जाएगा.’
श्री जाधव ने घड़ी की ओर देखा रात के आठ बजने वाले थे. उसने कहा, ’वह अभी दवाखाने में ही होगा, लेकिन घर लौटने पर जैसे ही इस घटना के बारे में सुनेगा, तुरन्त फरार हो जाएगा.’
लेकिन श्री जाधव ने इतना मौका ही नहीं दिया. वह विद्याधर के साथ दल-बल सहित उस दवाखाने में पहुॅचे जहाॅ कैलाश काम करता था. उस समय दवाखाने में कोई नहीं था और कैलाश अकेला बैठा बेचैनी से बार-बार घड़ी की ओर ताक रहा था. श्री जाधव कुछ सोचकर सिपाहियों के साथ बाहर ही रूक गये और विद्याधर से बोले, ’तुम जाकर कैलाश को किसी बहाने यहीं बुला लाओ.’
लेकिन विद्याधर ने जैसे ही दवाखाने में कदम रखा, कैलाश तड़पकर खड़ा हो गया, कुटिलता से मुस्कराता हुआ बोला, ’मुझे सब खबर मिल चुकी है, बीवी का खून करके बड़े मर्द बन गये हो तुम. लेकिन मेरे पीछे पड़ोगे तो बड़ा बुरा अंजाम होगा. फौरन यहाॅ से भाग जाओ वरना अभी तुम्हारा भेजा छलनी कर दूॅगा.’
कहते-कहते कैलाश ने पैन्ट की जेब से कट्टा निकाल लिया तो विद्याधर को कंपकपी छूट गई, लेकिन उसी समय श्री जाधव दल-बल सहित दवाखाने में घुस पड़े. पुलिस जनों को देखते ही कैलाश के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. वह कुछ सोच समझ पाता, तब तक श्री जाधव ने झपटकर उसके हाथ से कट्टा छीन लिया. दूसरे ही क्षण एक सिपाही ने कैलाश के हाथों में हथकड़ी पहना दी,
श्री जाधव कैलाश और विद्याधर को लिए हुए थाने लौटे तो वहाॅ अनुराधा का शव देखकर कैलाश की आंखों में एक अजीब-सा दर्द छलक आया. उसने जलती दृष्टि से विद्याधर की ओर देखकर कहा, ’कमीने बूढ़े तेरी जगह कोई और होता तो खुद ही चुल्लू भर पानी में डूबकर आत्महत्या कर लेता, लेकिन तूने उस गलती की सजा इस बेचारी को दी......... कानून तुझे कभी नहीं छोड़ेगा.’ इसके बाद कैलाश ने बिना पूछे ही सब कुछ बता दिया. उसका बयान विद्याधर से मिलता-जुलता ही था, लेकिन उसने इतनी बड़ी घटना की जो पृष्ठभूमि बताई, उस पर तो श्री जाधव ने ध्यान ही नहीं दिया था.
बिट्ठलनगर निवासी विद्याधर की एक शादी बहुत पहले हो चुकी थी. उस समय विद्याधर पावर हाउस में नौकरी करता था. वहाॅ उसने बेहिसाब पैसे कमाए. पावर हाउस में अनेक भ्रष्ट अधिकारी थे, जो केबल आदि चुरा कर बेच देते थे. विद्याधर स्टोर में था इसलिए उसे अपने अफसरों के काले कारनामों की पूरी जानकारी थी, लेकिन जब भी माल बेचा जाता, उसे भी कुछ न कुछ हिस्सा दे दिया जाता था इसलिए वह हमेशा अपना मुह बन्द किये रहता. बाद में उसने और तेजी दिखाई तथा जब तब खुद ही बिजली का सामान चुराकर बेचने लगा कई बार पकड़ा भी गया, लेकिन वह अपने अफसरों का भेद जानता था इसलिए उसे नाराज नहीं किया जा सकता था, परिणामस्वरूप डाट-फटकार कर छोड़ दिया जाता.
विद्याधर उन दिनों चोरी और कमाई में इस कदर व्यस्त था कि कभी घर-गृहस्थी की ओर ध्यान ही नहीं दे पाया. पत्नी की तो उसे जैसे सुध ही नहीं रहती थी. उसकी इस उपेक्षा से मन ही मन घुटते-घुटते बेचारी बीमार पड़ गई, आखिर एक दिन वह चल बसी, तब पहली बार विद्याधर ने महसूस किया कि औरत कितनी जरूरी होती है.
उस समय विद्याधर 46 साल का अधेड़ हो चला था, लेकिन उसे उम्र की परवाह नहीं थी, क्योंकि उसके पास पैसा था. पहली पत्नी के मरने के छः महीने के बाद ही वह दूर के एक गरीब रिश्तेदार की बेटी अनुराधा को ब्याह लाया तो जिसने भी देखा आंखें फाड़े ताकता ही रह गया. गोरे रंग की रूपसी अनुराधा उस समय मुश्किल से 26-27 साल की रही होगी. मादक यौवन के उन्माद से उसका अंग-अंग थिरक रहा था, जैसे बरसात में बढ़ी हुई नदी बांध तोड़कर बहने के लिए मचल रही हो. विद्याधर बापट के पड़ोसियों में एक चर्चा थी, ’यह बूढ़ा औरत की ललक में पागल तो नहीं हो गया. भला धधकती भट्ठी जैसी अनुराधा का ताप इसका क्षीण होता पौरूष झेल पायेगा ?’
सचमुच अनुराधा पर तो जैसे वज्रपात ही हुआ हो. विद्याधर उसके रूप का दीवाना था. उसे खुश रखने के लिए आए दिन नई-नई कीमती साडि़यां और गहने खरीदता रहता था. कभी-कभी तो इसी दीवानगी में वह खुद अनुराधा का श्रृंगार करने बैठ जाता ..... .
लेकिन विद्याधर का अटूट प्यार अनुराधा का मन नहीं बहला सका, बल्कि कभी-कभी तो उसके लिए यह बहुत ही कष्टदायक बन जाता था. विद्याधर आवेग के मारे अनुराधा की युवा उमंगों को सुलगा तो देता था, लेकिन उसकी जर्जर देह में अनुराधा के यौवन का ताप बुझाने का पौरूष एकदम नहीं था. विद्याधर जब शिथिल पड़कर सो जाता, तब भीतर ही भीतर सुलगती आग से बेचैन अनुराधा सारी-सारी रात छटपताती रह जाती थी. उस समय उसे विद्याधर से बड़ी नफरत होती थी. कभी-कभी तो वह उत्तेजना से इस कदर पागल हो उठती कि मन होता या तो वह अपनी जान दे दें या विद्याधर की जान लेकर उसके शिकंजे से मुक्त हो जाए. शायद वह किसी दिन ऐसा कुछ कर भी बैठती, लेकिन उस समय एक तरह से कैलाश ने ही उसे बचा लिया.
अनुराधा की फाइल फोटो
कैलाश 25-26 साल का हृष्ट-पुष्ट युवक है. इण्टर पास करने के बाद उसे नौकरी नहीं मिली तो उसने कम्पाउंडरी सीख ली और एक दवाखाने में काम करने लगा. अभी उसकी शादी नहीं हुई थी. वैसे चरित्र के बारे में उसने कभी किसी को शिकायत करने का मौका नहीं दिया, लेकिन अनुराधा उसे बहुत अच्छी लगती थी. उसका खिला-खिला सौन्दर्य और मादक यौवन कैलाश को हमेशा भीतर-ही-भीतर मथते रहते.
कैलाश अनुराधा के बगल में ही रहता था. सुबह-शाम तीन-तीन घण्टे के लिए दवाखाने जाना पड़ता, बाकी सारा दिन वह घर में ही पड़ा रहता था, इसलिए अनुराधा से बातें करने का काफी मौका मिल जाता था. देखते ही देखते दोनों घनिष्ट हो उठे. अनुराधा भी मन ही मन कैलाश को चाहने लगी, लेकिन दोनों को ही मन की बात उजागर करने का साहस नहीं हो रहा था. आम तौर से कैलाश के लौटने का समय होता तो अनुराधा जैसे उसकी प्रतीक्षा में दरवाजे पर ही खड़ी रहती थी, लेकिन एक दिन वह बहुत देर तक नहीं दिखाई पड़ी तो कैलाश बचैन होकर उसके घर पहुॅच गया. कुंडी खटकने की आवाज सुनकर अनुराधा ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कहकर लस्त-पस्त भाव से जाकर फिर लेट गई.
कैलाश ने घबराकर पूछा, ’क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो ? लगता है अभी तक नहाई धोई नहीं हो.’
अनुराधा ने धीरे से कहा, ’आज तबियत ठीक नहीं है कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’
कैलाश ने जल्दी से झुककर अनुराधा की नब्ज पकड़ ली. उसके स्पर्श मात्र से अनुराधा के शरीर में मानों चींटियां रेंग उठी. नसें टीसने लगी और आंखे एक अजीब से नशे से भारी हो उठी. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. भर्राए स्वर में उसने कहा, ’तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे डाक्टर हो......’
’बहुत बड़ा डाक्टर हूॅ भाभी.’ कैलाश ने हंसकर कहा, ’देखो न, नाड़ी छूते ही मैंने तुम्हारा रोग भांप लिया...... बुखार हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, बापट भइया सबेरे ड्यूटी चले जाते हैं तो शाम को ही लौटते हैं.’
अनुराधा के मंुह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. तुनक कर वह बोली, ’शाम को भी वह लौटे चाहे न लौटे, मुझको उससे क्या.’
कैलाश ने जल्दी से कहा, ’यह बात नहीं मेरा मतलब तुम्हारी शादी के दो साल हो गए. लेकिन अभी तक घर में किलकारी नहीं गंूजी. बच्चे-वच्चे हों तो मन लगा रहता है.’
’क्यों ?’
’तुमको कुछ पता भी है..... 47 के आसपास उम्र होगी उनकी, 18-19 साल की लड़की ब्याह लाने से थोड़े ही कोई जवान हो जाता है.... मेरी किस्मत फूटी थी और क्या. अगर माॅ-बाप गरीब न होते तो क्या ऐसे ही पैसे के जोर पर यह खरीद लाते मुझे.’
अनुराधा को सिसकते देख कैलाश व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ’मैंने अनायास ही गलत बात छेड़ दी, भाभी रोओ मत, नहीं तो मुझे बहुत दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठकर नहाओ धोओ, फिर चित्त थोड़ा शान्त हो जाएगा.’
कैलाश के बहुत जिद्द करने पर अनुराधा को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो कैलाश घर चला गया, लेकिन मन नहीं लगा. अनुराधा की बातें उसे लगातार कुरेद रही थी. आखिर नहीं रहा गया तो थोड़ी देर बाद वह फिर दरवाजे पर आ खड़ा हुआ. उस समय चारों ओर दोपहरी तप रही थी. कैलाश ने धीरे से कुण्डी खटखटा कर आवाज दी, ’भाभी.’
भीतर से उत्सुक स्वर सुनाई पड़ा, ’कौन ?’
’मैं हूं कैलाश.’
’दरवाजा खुला ही है, अंदर आ जाओ.’
कैलाश अंदर पहुॅचा तो अनुराधा की आवाज सुनाई पड़ी, ’तुम बैठो, मैं नहाकर अभी आती हूॅ.’
कैलाश ने अनायास ही बाथरूम की ओर देखा दरवाजा खुला ही था. कैलाश का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन उठीं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी. कैलाश ने एक बार चोर निगाहों से बाहर की ओर ताका. सन्नाटा देखकर उसने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते कदमों से बाथरूप के सामने जा खड़ा हुआ अनुराधा उन्मुक्त भाव से फव्वारे के नीचे बैठी नहा रही थी. उस समय उसकी देह पर एक सूत भी नहीं था. उद्याम निर्वसन यौवन की चकाचैंध से कैलाश की आंखे फटी की फटी रह गई. वह बेसाख्ता पुकार उठा, ’भाभी.’
अनुराधा जैसे चैंक पड़ी, फिर भी उसने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. फव्वारे के नीचे बैठे ही घूमकर पुष्ट उन्नत उरोजों पर हाथ रखते हुए कटाक्ष करके उसने कहा, ’बड़े शरारती हो तुम अभी कोई देख लें तो, कमरे में जाओ.’
लेकिन कैलाश नशे में झूमता-झूमता हुआ सा बाथरूम में घुस पड़ा. कहने लगा, ’कोई नहीं देखेगा भाभी, मैंने बाहर वाले दरवाजे की कुण्डी बंद कर दी है.’
’तो यह बात है इसका मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’
’तुम भी तो प्यासी हो, भाभी. सचमुच बापट भइया के बूढ़े शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृत्प करने की शक्ति नहीं है. विधाता ने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा छल किया, भाभी....’
 विद्याधर बापट: अनुराधा का पति
कहते-कहते कैलाश ने अनुराधा की धुली-धुली देह को अपनी बांहों में भींच लिया और पागल की तरह प्यार करने लगा तो वह भी विह्वल होकर कैलाश की चैड़ी छाती में नाखून धंसाकर सिसिया उठी. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. यौवन से सुलग रहे दो तन एक हो गये. बाथरूम में फव्वारे से गिरते पानी की छरछराहट उत्तेजक सीत्कार में दबने लगी.
थोड़ी देर बाद वासना का ज्वार शान्त हुआ तो अनुराधा एक अजीब पुलक से थरथरा रही थी. उस दिन पहली बार उसे सच्चे अर्थो में पुरूष-संसर्ग का अलौकिक सुख मिला था. वह विह्वल होकर एक बार फिर कैलाश से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ’मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी कैलाश! लेकिन तुमने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को फिर से हरा कर दिया. तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे, कैलाश.’
’ऐसा क्यों कहती हो, भाभी. मैंने तो जिस दिन पहली बार तुम्हें देखा था, उसी दिन से तुम्हारा दीवाना बन गया. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूॅ, लेकिन तुमने कभी शह ही नहीं दी. आज भी अगर बच्चे वाली बात न उठती तो तुम शायद बापट भइया के बारे में बताती भी न ......’
’बड़े बेशर्म हो तुम. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात बात कह पाती है.’
अपनों से कोई दुराव नहीं होता भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर बापट भइया.....’
’मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो कैलाश ऐसे मोके पर अपने बापट भइया की याद दिलाकर मेरा मन मत खराब किया करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम जाकर कमरे में बैठो.’
’तुम भी चलो न.’ कहते-कहते कैलाश ने ठुमक कर अनुराधा को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जाकर पलंग पर डाल दिया. अनुराधा ने झिड़की-सी दी, ’कपड़े तो पहनने दो....’
’क्या जरूरत है.... आज तुम्हारा समूचा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो, भाभी.’
कैलाश बहुत देर तक अनुराधा की मादक देह से खिलवाड़ करता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.
लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतना ही और बढ़ती जाती है. फिर अनुराधा के लिए तो यह ऐसा छीना हुआ सुख था जो उसका पति उसे कभी नहीं दे सकता था. वह बार-बार उस अलौकिक सुख को पाने के लिए ललकती रहती. कैलाश भी जैसे मौके का इन्तजार करता रहता था. दवाखाने से लौटते ही वह चुपचाप अनुराधा के यहाॅ पहुॅच जाता, फिर शाम को उसके दवाखाने जाने के समय तक दोनों निर्द्धन्द भाव से वासना के समुन्दर में डूबते-उतराते रहते.
इस मादक खेल में कभी-कभी कैलाश इस कदर डूब जाता कि उसको शाम को दवाखाने जाने का भी होश नहीं रह जाता था. बस, यहीं उन दोनों से चूक हो गई.
प्रस्तुत घटना से करीब 6 महीने पहले एक रोज विद्याधर बापट लौटा तो दरवाजा थपथपाते-थपथपाते अचानक रूक गया, लगा जैसे भीतर अनुराधा किसी से बात कर रही हो. कान लगाकर सुनते ही विद्याधर ने अपने पड़ोसी कैलाश की आवाज भी पहचान ली. सारा मामला समझते ही उसके पैरों के नीचे से जमीन सरक गई और वह चिल्ला पड़ा, ’अनुराधा दरवाजा खोलो, अनुराधा.’
एक पल के लिए अंदर श्मशान जैसा सन्नाटा छा गया. दूसरे ही पल झटके से दरवाजा खुला और कैलाश गुर्रा पड़ा, ’क्यों बिना मतलब चिल्ला रहे हो, बापट भइया. कुछ इज्जत का भी ख्याल किया करो. हंसी-हंसी में भाभी को चिढ़ाने के लिए मैंने जरा-सा दरवाजा बंद कर लिया तो तुम शोर मचाने लगे. बड़े शंकालु हो बापट भइया.’
कैलाश मुस्कराता हुआ घर चला गया तो विद्याधर बापट ने अपनी पत्नी की ओर देखा. कोई और पति होता तो उस समय जाने क्या कर डालता, लेकिन विद्याधर बापट स्वयं भी अनुराधा के रूप यौवन का दीवाना था, इसलिए दुखी स्वर में धीरे से बोला, ’तुमने यह क्या किया, अनुराधा.’
कैलाश ने तो विद्याधर को फुसलाने के लिए अच्छा सा बहाना गढ़ दिया था, लेकिन अनुराधा पति की बात सुनते ही विफर उठी, ’मुझे जो करना चाहिए, वहीं किया. इस उम्र में मेरी जैसी लड़की को ब्याह कर लाते समय क्यों नहीं सोचा था कि इसका परिणाम क्या होगा ? लेकिन तुमने रूपये के जोर पर मनमानी की, अब मैं मनचाही पूरी कर रही हूं तो तुम्हें बुरा क्यों लग रहा है.’
विद्याधर बापट का चेहरा बदरंग हो उठा. वह गिड़गिड़ाने लगा, ’पागल हो गई हो क्या अनुराधा कुछ तो इज्जत का ख्याल करो.’
’तुम्हारी इज्जत का ख्याल करके ही कैलाश से चोरी छिपे मिलती हूॅ, लेकिन अगर तुमने बाधा डालने की कोशिश की तो कान खोलकर सुन लो, मैं आज ही तुम्हारा घर छोड़कर चली जाऊंगी और खुलेआम कैलाश के साथ रहने लगूंगी. तब किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रह जाओंगे.’ विद्याधर सिर पीट कर रह गया.
इसके बाद भी यद्यपि अनुराधा और कैलाश चोरी-छिपे ही मिलते रहे, पर मौके-बेमौके कई बार विद्याधर ने उन दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. हर बार विद्याधर अनुराधा को समझाने की कोशिश करता, लेकिन वह उसकी बातें एक कान से सुनती और दूसरे कान से निकाल देती. आखिर उन दोनों को एक दूसरे से दूर करने के लिए विद्याधर ने एक अच्छा-सा उपाय सोच लिया, अब वह ज्यादातर घर में ही रहता था. उसके सामने भी कैलाश आता और देर-देर तक बैठा इधर-उधर की बातें करता रहता, फिर भी विद्याधर को इतना संतोष था कि उन दोनों को उसकी इज्जत से खेलने का मौका नहीं मिलता था.
लेकिन ज्यों-ज्यों दिन बीतते रहे, त्यों-त्यों कैलाश और अनुराधा उच्छृंखल होते गए. 18 फरवरी को कैलाश ने एकाएक विद्याधर के सामने ही अनुराधा का हाथ पकड़ लिया और अनुराधा भी बेशर्मी से हंस-हंसकर उससे बातें करती रही तो यह सब विद्याधर के बर्दाश्त से बाहर हो गया. उसे कैलाश से तो कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी, लेकिन उसके जाते ही विद्याधर आंगन में पड़ी, कुल्हाड़ी उठाकर पत्नी पर टूट पड़ा, ’तू औरत नहीं वेश्या है..... तूने मेरा घर नरक बना दिया, आज मैं तुझको जिन्दा नहीं छोड़ूंगा.’
पहले ही वार में अनुराधा का सिर फट गया. वह ऊपर से नीचे तक खून से नहा उठी, लेकिन प्राण-भय ने जाने कितनी शक्ति दे दी कि अनुराधा सहायता के लिए चिल्लाती हुई घर से बाहर निकल आई. पीछे-पीछे यमराज की तरह विद्याधर भी दौड़ पड़ा. उसका उग्ररूप देखकर किसी की रोकने-टोकने की हिम्मत नहीं हुई तो अनुराधा जान बचाने के लिए भागती हुई बिट्ठलनगर  थाने पहुॅच गई.
सारी कहानी सुनकर थाना प्रभारी जाधव थोड़ी देर चुप बैठे रह गए. सचमुच ऐसी स्थिति में कोई भी पति यही करेगा, लेकिन अनुराधा भी तो देह-धर्म से मजबूर थी. उसका दोष बस इतना ही तो था कि नियति द्वारा छली जाने पर उसने अपना सुख छीन-झपट कर पा लेने की कोशिश की. पौराणिक कथाओं में भी ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि ऋतुमती स्त्री के कामना करने पर उसकी अवहेलना करने वाला पाप का भागी होता था.
लेकिन आज परम्पराएं बदल गई हैं. थाना प्रभारी जाधव भी कानून से मजबूर थे. उन्होंने विद्याधर के विरूद्ध हत्या के अभियोग में भादवि की धारा 302 के अन्तर्गत मुकदमा पंजीकृत करके अनुराधा के शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दिया.
बाद में एक मुकदमा आम्र्स एक्ट की धारा 25/27 का कैलाश के विरूद्ध भी पंजीकृत करके अगले दिन दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर दिया गया, जहाॅ से वे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिये गये. प्रस्तुत कथा लिखने तक किसी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस अदालत में आरोप पत्र पेश करने की तैयारी कर रही हैं.

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