शुक्रवार, 22 मार्च 2013

‘‘जब बीवी ढूंढे किसी और के बाहों में प्यार का सुख’’


प्रतीक चित्र
अनीता एक आधुनिक विचारधारा की युवती थी। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार यौवन की बहार में कदम रखा तो उसकी खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी। यद्यपि वह शादी-शुदा थी, पर टी.बी. रोग से पीडि़त अपने पति से संतुष्ट नहीं थी तथा बीमारी से उसकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो गयी थी। इस कारण वह जल्द ही प्रमोद के प्रेम जाल में आ फंसी थी।
प्रमोद भी विवाहित था तथा उसके दो बच्चे भी थे, पर वह वाराणसी में अकेले ही रहता था। स्वभाव से रंगीन मिजाज प्रमोद को अपनी पत्नी का साधारण नैन-नक्ष पसंद नही था। यही वजह थी कि उसने अपनी पत्नी को गांव में अपने पिता के पास छोड़ रखा था। वाराणसी में अनीता से एक बार परिचय हुआ तो जल्द ही दोनों एक-दूसरे के इतने निकट आ गए, कि उनके बीच अंतरंग संबंध भी कायम हो गये।
वक्त के साथ उनका प्यार परवान चढ़ता रहा। दरअसल प्रमोद को अनीता की हर अदा काफी पसंद थी। साल-दो साल बाद जब उसके पति का देहांत हो गया, तो अनीता ने प्रमोद से दूसरी शादी कर ली। शादी के बाद प्रमोद ने उसके तीनों बच्चों को भी ने अपना लिया था।
अनीता शुरू से ही दिलफेंक और मनचली युवती थी। एक खूंटे से बंधकर रहना उसकी आदत में शुमार नही था। शुरू के कुछ वर्ष तो वह प्रमोद के प्रति पूरी निष्ठावान रही, पर जल्द ही उसके पांव डगमगाने लगे और वह छिपी नजरों से अपने किसी नये प्रेमी की तलाश में लग गयी। उसकी पड़ोस में विजय रहता था। पड़ोसी होने की वजह से विजय व प्रमोद में अच्छी जान-पहचान थी तथा दोनों एक-दूसरे के घर अक्सर आते-जाते रहते थे।
अचानक प्रमोद का काम किन्ही कारणों से ठप पड़ गया, जिस कारण वह आर्थिक परेशानी में आ गया। ऐसे समय में विजय ने उसकी आर्थिक मदद की। विजय की स्वार्थ रहित मदद लगातार मिलते रहने पर अनीता के अंदर विजय के प्रति एक अहसान का भाव घर कर गया। साथ ही वह विजय की नेकी से भी काफी प्रभावित थी। इस कारण उसका झुकाव विजय की तरफ बढ़ता चला गया। एक रोज अनीता ने विजय से कहा, ‘‘ आपने हमारी जो मदद की, उसका एहसान शायद ही कभी चुका पाऊॅगी। आप तो हमारे परिवार के लिए साक्षात देवता के समान है।’’
‘‘इसमें अहसान की क्या बात है। एक-दूसरे की मदद करने से तो संसार चलता है।’’ मुस्कराते हुए विजय ने जवाब दिया।
‘‘पर मेरे दिल में आपकी नेकियों का एक बोझ-सा बना रहता है।’’ अनीता बोली, ‘‘फिलहाल मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नही है?’’
विजय बखूबी समझ चुका था कि अनीता उसके पहलू में आने को उतावली है। अतः उसने मजाकिया लहजे मे कहा, ‘‘जब देना ही चाहती हो तो मुझे अपना दिल दे दो। इससे तुम्हारा बोझ भी उतर जायेगा।’’
अनीता कसमसा गयी। उसने तिरछी नजरों से विजय को पलभर को देखा। फिर बोली, ‘‘ये दिल तो कब का तुम्हारा हो चुका है, पर तुमने एक औरत की चाहत को समझा ही नही।’’
‘‘अनीता मेरा मानना है कि हर चीज शांति से करनी चाहिए। अब तुम सोच लो। एक बार कलाई पकड़ूंगा तो फिर आसानी से छोड़ूंगा नहीं।’’ कहते हुए विजय ने अनीता की कलाई थाम ली।
‘‘वह तो तुम पकड़ ही चुके हो। अब जो मर्जी में आए करो। मैं कभी चूं तक नही करूंगी।’’ कहती हुई अनीता स्वयं ही कटे व्रक्ष की तरह विजय की गोद में आ गिरी।
प्रतीक चित्र
अब विजय, प्रमोद व बच्चों की अनुपस्थिति में देर तक उसके घर में रहने लगा। पड़ोसियों को जब यह संबंध खटकने लगा तो दबी जुबान से इसकी चर्चा में होने लगी। उड़ते-उड़ते यह खबर प्रमोद तक भी जा पहुंची। तब उसने अनीता को विजय से संबंध रखने को मना किया, अपने बच्चों और घर-परिवार की दुहाई दी, किन्तु कामांध अनीता को प्रमोद के उपदेश अच्छे नही लगे। जब पानी सर के उपर गुजरने लगा , तो प्रमोद के लिए अनीता का यह व्यभिचार असहनीय हो गया। वह अनीता के साथ मार पीट करने लगा।
विजय से प्रमोद झगड़ा मोल लेना नही चाहता था, क्योंकि उसे भय था कि विजय उसकी आर्थिक मदद बंद कर सकता है। जब अनीता ने विजय से अपना संबंध नहीं तोड़ा, तब प्रमोद ने वहां से मकान खाली कर लेने का निर्णय कर लिया। दरअसल प्रमोद की सोच थी कि दूसरी जगह चले जान पर अनीता व विजय की दोस्ती टूट सकती हैं। लेकिन प्रमोद की यह सोच गलत साबित हुई, यहां भी अनीता व विजय का आपस में मिलना-जुलना जारी रहा। अब प्रमोद को समझ में नही आ रहा था कि वह क्या करे।
उसने हर कोशिश करके देख ली थी, पर अनीता विजय से अपना संबंध तोड़ने को राजी नही थी। लिहाजा प्रमोद मानसिक तनाव में रहने लगा। वह जब-तब बिना किसी वजह के अनीता को पीट डालता, वहीं विजय को भी भला-बुरा करने पर अब उसे कोई संकोच नहीं था। यों कहें कि अनीता ने अपनी हरकतों से प्रमोद को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था।
प्रमोद द्वारा लगातार मार-पीट किये जाने से अनीता आखिरकार उससे तंग आ गयी और उसने अपनी परेशनी विजय को बतायी। इस पर विजय ने राय दी ‘‘वह जब तक जिंदा रहेगा तब तक तुम उससे परेशान रहोगी और उसके जीवित रहते हम दोंनों खुलकर मिल भी नही सकते।’’
‘‘तुम सही कर रहे हो।’’ अनीता ने अपनी सहमति देते हुए कहा, ‘‘अब उसे यमलोक पहुंचा ही दो।’’
विजय ने हामी भर दी उसके बाद योजनानुसार विजय व अनीता ने प्रमोद से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली और उसे आश्वासन दिया कि पुनः उन दोनों से ऐसी गलती नही होगी। फिर प्रमोद ने उन्हें माफ भी कर दिया।
योजनानुसार कुछ दिन बाद अनीता काम का बहाना कर अपने मायके चली गई। अगले दिन विजय प्रमोद के घर आया और बोला, ‘‘भाई साहब आज हम साथ-साथ खाना खायेंगे। ’’
प्रमोद को भला इसमें क्या इतराज था, दोनों ने छत पर साथ बैठकर खाना खाया। फिर बातचीत करते रात गहरा गई तब विजय ने प्रमोद से कहा, ‘‘आज हम यहीं सो जाते हैं। सुबह चले जायेंगे।’’
इसके बाद विनोद नीचे कमरे में चला आया जबकि प्रमोद छत पर सो गया। कुछ देर बाद जब प्रमोद खर्राटे भरने लगा तो विजय उठा और उसके जिस्म पर चापड़ से तब तक प्रहार करता रहा, जब तक उसकी मौत नही हो गई। इसके बाद वह सावधानी पूर्वक वहां से निकल भागा। अगले दिन विजय ने फोन कर इस घटना की सूचना अनीता को दी, अनीता इससे काफी खुश हुई। उसने सोचा अब वह विजय के साथ नई ग्रहस्थी बसायेगी। पर पुलिस की सूझबूझ से अनीता व विजय गिरफ्तार कर लिए गए।
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