मंगलवार, 19 मार्च 2013

गर्म गोश्त के सौदागर



प्रतीक चित्र
 दुख की मारी शीला के सिर से बाप का साया उसी समय उठ गया था, जब वह सवा महीने की थी। मां ने किसी तरह उसे पाला-पोसा, लेकिन नियति से यह भी नहीं देखा गया और वह सात साल पहले वह भी चल बसी, तो पड़ोसियों ने रहम करके शीला को बलिया में रहने वाले उसके चाचा-चाची के पास पहुंचा दिया था।
चाचा की भी माली हालत अच्छी नहीं थी। मेहनत-मजदूरी करके बेचारा बड़ी मुश्किल से अपनी ग्रहस्थी चला रहा था, इसके बावजूद वह भाई की मासूम बेटी को बेसहारा तो नहीं छोड़ सकता था, इसलिए रख लिया। चाचा-चाची की मोहब्बत और अपनेपन के चलते शीला अपने मां-बाप को भी भूल गयी, लेकिन मुसीबत तो बस जब जहां चाहे, टूट पड़ती है। करीब एक साल पहले संजीव की नजर शीला पर पड़ी तो, उसने तुरंत जाल फैलाना शुरू कर दिया और उसके चाचा से जान-पहचान बढ़ाकर एक दिन कहने लगा, ‘‘मेरी बीवी की तबियत थोड़ी खराब रहती है, इसलिए सोच रहा हूँ कि घर के काम-काज में उसकी मदद के लिए किसी लड़की को रख लूं, लेकिन मुश्किल यह है, सब पर भरोसा भी तो नहीं किया जा सकता।
शीला के चाचा ने सिर हिला दिया, ‘‘हां, यह बात तो है……’’
कुछ देर चुप रहने के बाद संजीव बोला, ‘‘एक बात तुमसे कहूं, शीला का स्वभाव मुझें काफी अच्छा लगता है, अगर तुम हां कर दो तो…… वैसे काम-काज कुछ ज्यादा नही है। यूं समझो कि यह रहेगी तो बीवी को थोड़ा सहारा मिल जायेगा और मुझे कोई फिक्र नही रहेगी।’’
‘‘लेकिन वह तो अभी बच्ची है…… रोज इतनी दूर जाना-आना……’’
‘‘रोज आने-जाने की क्या जरूरत है। उसे भी अपना ही घर समझो।’’ संजीव ने शीला की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसके चाचा से कहा, ‘‘यह जैसी तुम्हारी भतीजी, वैसी मेरी भतीजी, वहीं रहेगी। खाने-पहनने की भी फिक्र मत करो, तुम्हें तो हर महीने इसकी पूरी तनख्वाह मिल जाया करेगी।’’
प्रतीक चित्र
शीला जवान हो चली थी। इस उम्र में उसके चाचा उसे अपनी नजरों से ओझल नहीं रखना चाहता था, लेकिन अपनी गरीबी को देखते हुए उसने सोचा कि कम से कम मासूम शीला को तो तकलीफों से छुट्टी मिल जायेगी। फिर संजीव भी शक्ल सूरत और बात व्यवहार से बड़ा शरीफ लग रहा था, इसलिए उसने शीला को समझा-बुझाकर उसके यहां काम करने के लिए भेज दिया। लेकिन बेचारे को क्या पता था कि चेहरे से शरीफ-सा लगने वाला संजीव दरअसल आदमी नही हैवान है। घर पहुंचते ही वह शीला के साथ छेड़-छाड़ करने लगा तो वह चौंक पड़ी और शरमा कर परे सरकने लगी, पर संजीव ने वहशी की तरह झपटकर उसे दबोच लिया और अश्लील हरकतें करने लगा, शीला घबरा गयी और छूटने के लिए छटपटाती हुई गिड़गिड़ाने लगी।
‘‘तुम इतना घबरा क्यों रही हो…… डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।’’ संजीव ने पुचकारते हुए फुसलाने की कोशिश की, ‘‘मैं तो तुम्हें गरीबी के दोजख से इसलिए निकाल कर लाया हूँ कि मेरी बात मानोगी तो तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा। तुम्हारे पास दौलत ही दौलत होगी।’’
‘‘नहीं…… नहीं…… इज्जत से बड़ी कोई दौलत नहीं होती। मैं ऐसी दौलत नहीं चाहती।’’ शीला ने छूटने के लिए पूरा जोर लगाते हुए कहा, ‘‘खुदा के लिए मुझे मेरे घर पहुंचा दो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।’’
लेकिन शीला के लाख रोने-गिड़गिड़ाने के बावजूद संजीव नहीं माना और उस मासूम कमसीन लड़की को औरत बनाकर ही छोड़ा। शीला घुटनों में सिर छिपाकर सिसकने लगी तो संजीव पुचकारता हुआ बोला, ‘‘जो होना था सो हो चुका। अब तो घर लौटने का रास्ता भी बंद हो गया, क्योंकि यह सब जानने के बाद तुम्हारा चाचा तुम्हें अपने दरवाजे पर भी नहीं खड़ी होने देगा, इसलिए रोना-धोना बेकार है और जैसा मैं कहूं, वैसा ही करती रहो तो मजा भी करोगी और ऐश भी।’’
शीला अभी उस हादसे से उबर भी नहीं पायी थी कि शमीम के साथ उसका दोस्त हीरालाल ने भी वही सब करके उसे पूरी तरह जिन्दा लाश बना दिया। इन दोनों के अलावा बाबू नाम का एक और आदमी अक्सर उसके पास आया करता था। उसकी दुकान संजीव के ब्यूटी पार्लर के पास ही थी इसलिए दोनों में ज्यादा जान-पहचान हो गयी थी।
संजीव उससे जबर्दस्ती धंधा करवाना शुरू कर दिया, तब पता चला कि उसने और हीरालाल ने शहर में कई मेंस ब्यूटीपार्लर खोल रखे है, इन ब्यूटी पार्लरों में तमाम लड़कियां काम करती हैं, लेकिन यह सब सिर्फ दिखाने के लिए है। दरअसल  वह सेक्स रैकेट का अड्डा है और संजीव तथा हीरालाल ब्यूटी पार्लरों की ओट में जिस्मफरोसी का धंधा करते है। वह अकेली ऐसी लड़की नही है, बल्कि संजीव और हीरालाल ने दर्जनों लड़कियों को फांस रखा है। उनमें काजल और नीटू नाम की दो खास लड़कियां हैं, जो खुद तो धंधा करती ही हैं। संजीव के इशारों पर वे दूसरी लड़कियों को भी फंसाकर लाया करती हैं, जिनमें से कई एक तो अच्छी-खासी पढ़ी लिखी और सम्भ्रांत परिवारों की भी लगती है। काजल और नीटू ने उन लोगों को लाखों रूपये की कमाई करायी ही है, खुद भी वह खूब कमाती है।
प्रतीक चित्र
शीला जैसी कम उम्र और गोरी देह दिखाकर उसे ग्राहकों के साथ होटल में या किसी और जगह भेजा जाता था, बदले में एक-एक ग्राहक से पांच-पांच हजार रूपये वसूले जाते थे। एक-एक दिन में उसे कई-कई ग्राहकों को निपटाना पड़ता था, जिससे संजीव को रोज हजारों रूपये की कमाई होती, लेकिन उसके अपने पल्ले एक भी पैसा नहीं पड़ता था। संजीव ने उसको अपनी निगरानी में रखने के लिए एक कमरा ले रखा था। इसके अलावा उसको खाना और कपड़ा भर मिलता था, बस। अगर कभी वह कुछ रूपए चुरा-छिपाकर बचाने की भी कोशिश करती तो शक होते ही संजीव उसकी तलाशी लेता और कपड़े तक उतरवाकर छिपाए गए रूपए छीन लेता था। संजीव और हीरालाल लड़कियों को ग्राहक के पास भेजने से पहले अक्सर ब्लू फिल्में दिखाया करते थे।
एक साल में ही शमीम उसे इतने ग्राहकों के सामने परोस चुका है कि अब तो उसको उनकी गिनती भी नही याद रह गयी है। बाबू का नाम सिर्फ इसलिए याद है क्योंकि वह संजीव का खास जान-पहचान वाला था और अक्सर आता रहता। ग्राहक की मांग पर संजीव कलकत्ता, पटना जैसे दूसरे शहरों से भी लड़कियां मंगवा लिया करता था और यहां की लड़कियों को भी बाहर भेजकर वह मोटी रकम कमाया करता है।
पिछले दिनों शीला को भी कलकत्ता ले जाने की बात हो रही थी। वहां से आए दो मोटे आदमियों ने उसको देख कर पसंद भी कर लिया था, पर अचानक उसकी तबीयत खराब हो गयी। कुछ खाने पीने का मन नहीं होता था, रह-रहकर चक्कर आ जाता और कई बार उलटी भी हो गयी। जब उसने डाँक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह मां बनने वाली है। यह सुनकर उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। फिर वह कुछ सोच-समझ पाती, इसके पहले ही संयोग से परस्पर बतियाते संजीव और हीरालाल की कुछ बातें उसके कानों में पड़ गयी, तब पता चला कि कलकत्ता से आए दोनों आदमियों ने उसे क्यों पसन्द किया था। दरअसल  संजीव उसको बेचने के लिए कलकत्ता ले जाना चाहता था। यह जानकारी होते ही शीला अपनी सारी तकलीफ भूल गयी और वह गुपचुप ढंग से भाग कर रास्ता पूंछती-पूंछती अपने चाचा के यहां लौट आयी। उसी दिन उसके चाचा उसे लेकर थाने गए और रिपोर्ट दर्ज करवा दिया उनकी रिपोर्ट पर कार्यवाही करते हुए पुलिस ने संजीव व उसके साथी जेल की सलाखों के पिछे पहुंचा दिया।

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