शुक्रवार, 22 मार्च 2013

‘‘हवस का शिकारी’’


प्रतीक चित्र
दिव्या उम्र के 17वें पड़ाव पर पहुंच गई थी। उसका निखरता हुआ शरीर इस बात की सूचना दे रहाथा कि वह जवानी की दहलीज में कदम रख चुकी है। दिव्या का जितना प्यारा नाम था, उतना ही खूबसूरत चेहरा भी था। गोरा रंग होने के साथ-साथ उसके चेहरे पर एक अजीब सी कशिश थी, जो किसी को भी उसका दिवाना बना देती थी। हसमुख होने के कारण वह सहज लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाया करती थी।
सत्रह बसन्त पार कर लेने के बाद अब दिव्या उम्र के उस नाजुक दौर में पहुंच चुकी थी, जहां युवतियों के दिल की जवान होती उमंगे, मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना चाहती है। ऐसी ही हसरतें दिव्या के दिल में भी कुचांले भरने लगी थी, पर उम्र के इस पायदान पर खड़ी दिव्या ने अभी तक किसी की तरफ नजर भरकर देखा तक नही था।
यूं तो दिव्या बचपन से ही महत्वाकांक्षी थी। लिहाजा वह पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ वह घर का काम-काज भी मेहनत और लगन से किया करती थी, पर हाईस्कूल करने के बाद अचानक घर पर काम की अधिकता के चलते उसे स्कूल जाने का समय नही मिल पाता था। लिहाजा उसके पिता ने घर पर ही उसके शिक्षा का प्रबंध कर उसकी इंटर की परीक्षा उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा परिशद बोर्ड से दिलवाने का निश्चय किया। इस सम्बन्ध में अपने बहन-बहनोई से राय-मशवरा कर चंदौली जनपद से इण्टर का फार्म भरवा दिया।
वक्त बीतता रहा, वक्त के साथ ही नजदीक आ गई। परीक्षा देने के लिए वह सप्ताह भर पहले पटना से वाराणसी अपनी बुआ रजनी के यहां आ गई और मन लगा कर परीक्षा की तैयारी करने में जुट गई। दिव्या की बुआ के पति डाँक्टर हैं। उन्होंने वाराणसी में अपना भव्य व आलीशान मकान बनवा रखा है।
दिव्या जब अपने बुआ के घर आई तो घर में रंग-रोगन का काम चल रहा था । काम ठेकेदारी से करवाया जा रहा था। काम का ठेका रामनाथ ने ले रखा था। उसी के दिशा-निर्देश पर घर की रंगाई-पुताई की जाती थी। रंगाई-पुताई के लिए रामनाथ ने 3-4 कारीगर रखे थे, उन्ही में एक कारीगर संजय भी था।
25 वर्षीय संजय कुछ दिनों से वह राजनाथ के साथ ही था। संजय काम करने में तो मेहनती था पर शुरू से ही वह मनचला प्रवृत्ति का था। जब भी कोई हसीन व जवान लड़की उसके पास से गुजरती तो उसका मन उसे पाने के लिए लालायित हो जाता था। काम करने के दौरान भी अगर कोई लड़की उसे अकेले मिल जाती थी तो वह जबरन उसे अपनी हवस का शिकार बना लेता था। लड़की शर्म बस इस बात को उजागर नही करती थी। इसके चलते उसका हौसला काफी बढ़ चुका था।
दिव्या की बुआ के यहां भी वह ठेकेदार राजनाथ के आदमी के रूप में काम कर रहा था। पहली बार जब उसने दिव्या को देखा तो उसे पाने के लिए लालायित रहने लगा था। पर काम के दौरान दिव्या की बुआ वअन्य कारीगर भी होते थे, लिहाजा वह मन मारकर रह जाता और उचित मौके की तलाश में रहने लगा। संयोग से उसे एक दिन मौका मिल ही गया।
अचानक एक दिन किसी कारण बस अन्य कारीगर काम पर नही आए तो संजय अकेले ही रंग-रोगन का काम करने लगा। उस दिन वह किचन के आस-पास ही रंगाई-पुताई कर रहा था। लगभग 9 बजे दिव्या की बुआ के पति अपनी क्लीनिक पर चले गए। उनके बच्चे भी पढ़ने के लिए स्कूल जा चुके थे। अब घर पर दिव्या व उसकी बुआ ही रह गयी थी। दिव्या अपने कमरे में बैठी परीक्षा की तैयारी कर रही थी। लगभग एक बजे चौका बर्तन करने वाली आ गई थी, अचानक थोड़ी देर बाद रजनी को याद आया कि आज उसे कैंट स्थित पोस्ट आफिस में पैसा जमा करना जरुरी है। तब वह उठती हुई बोली, ‘‘दिव्या’’
‘‘जी बुआ’’
‘‘मै जरा पोस्टआफिस पैसा जमा कर आती हूँ।’’
प्रतीक चित्र
दिव्या कुछ बोल पाती इससे पहले ही रजनी पासबुक आदि लेकर घर से निकल गई। उन्होंने सोचा था जब तक बाई काम कर रही है, वह वापस लौट आएगी। लेकिन उनके आने से पहले ही बाई अपना काम निपटाकर चली गई, तो दिव्या घर में अकेली हो गई। दिव्या को अकेली देख संजय के मन में पहले से बैठा शैतान जाग उठा और वह दिव्या को अपनी हवस का शिकार बनाने का मन बना काम से अपना हाथ रोकते हुए आवाज लगाई, ‘‘दीदीप्यास लगी है, जरा एक ग्लास पानी तो देना..’’
संजय की आवाज सुनकर दिव्या ने अपनी पढ़ाई रोक दी और शीशे के एक ग्लास में पानी लेकर संजय के पास आ गई। जैसे ही दिव्या ने पानी देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो संजय ने उसकी कलाई पकड़ लिया। संजय के इस कृत्य से दिव्या घबरा गई और उसके हाथ से पानी का ग्लास छूट कर गिर गया। इस बौखलाहट में वह कुछ सोच-समझ पाती कि अचानक संजय ने उसे दबोच कर फर्श पर गिरा दिया। दिव्या बचाव के लिए हाथ पांव मारती रही, पर संजय कहां मानने वाला था। वह दिव्या के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करते हुए उसे वस्त्रविहीन करने लगा तो दिव्या गिड़-गिड़ा उठी, लेकिन संजय पर तो जैसे भूत सवार हो चुका था।
संजय की हैवानियत रूकते न देख दिव्या के मुंह से चीख निकल गई। चीख सुन संजय हैवान बन गया और एक हाथ से उसका मुंह दबा कर उसे आवरण विहीन कर दिया और उसके उरोजो को बेदर्दी से मसलते हुए उसके उपर छा गया। दिव्या दर्द से छटपटती रही पर संजय को इससे कुछ लेना देना नही था,उसे तो बस अपने जिस्म की प्यास बुझाने से मतलब था। वह तभी उठा जब उसके जिस्म का सारा लावा उबलकर बाहर आ गया
संजय जब अपने हवस की प्यास बुझाकर उठा तब तक दिव्या बेहोश हो चुकी थी। यह देख संजय घबरा गया और अपने बचने का उपाय सोचने लगा अचानक वही पास पड़े ईंट से दिव्या पर वार करने लगा और तब तक वार करता रहा जब तक दिव्या की मौत नही हो गई। फिर वही पास में पड़े लोहे के एक बड़े बक्से में शव छिपाने के बाद काम में जुटा ही था कि दिव्या की बुआ आ गई। घर में दिव्या को न देख कर संजय से पूछातो उसने टाल-मटोल सा जवाब दे दिया और फरार होने का बहाना ढूढ़ता रहा। रजनी दिव्या के मिलने तक उसे रूके रहने को कह पति को दिव्या के गायब होने की जानकारी दे दी ।
दिव्या की खोज होती रही अचानक कौतूहल बस रजनी ने बक्सा खोला तो उसमें से उठ रही गंध से वह शंकित हो रजाई आदि निकालने लगी। इसी बीच लघुशंका का बहाना कर संजय फरार हो गया। दिव्या का शव मिलने पर किसी ने पुलिस को खबर कर दिया। संजय पकड़ा गया तो उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तब पुलिस ने हवस के इस शिकारी को जेल भेज दिया।

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