सोमवार, 1 अप्रैल 2013

नामर्द

प्रतीक चित्र

मजदूरी करते जमुनी थकी नही थी, क्योंकि यही उसका पेशा था। बस सड़क की सफाई करते ऊब सी गई थी। अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहां से ज्यादा पैसा कमा सके जिससे वह अपने निठल्ले पति का पेट भरने के साथ ही उसकी दारू का भी इंतजाम कर सके।
शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था। जमुनी की नजर बहुत दिनों से वहां के काम पर थी। वहां अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे। एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहां पहुंच गई लेकिन बात नही बनी क्योंकि फिलहाल वहां किसी मरद की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुंची तो प्रतिक्षारत माधो ने पूछ लिया, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
जमुनी एक नजर पति के चेहरे पर डालते हुए बोली, ‘‘अस्पताल गई थी।’’
‘‘काहे, बच्चा लेने?’’ खोखली हंसी हंसते माधो ने पूछा।
‘‘और का....अब तू तो बच्चा दे नही सकता, वहीं कहीं से लाऊंगी।’’ जमुनी ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘‘बड़ी बेशरम हो गई है री....’’ माधो ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘‘चल काम की बात कर....’’
‘‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है भगवान कसम थोड़ा तर कर लूं। ला दे कुछ पैसे.... ’’ माधो बोला।
जमुनी बिना किसी हीला हवाली के अपनी गांठ खोल पांच रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढाते हुए कहा, ‘‘ले मर....’’
खींस निपोरते हुए माधो नोट लेकर वहां से चला गया। थोड़ी देर में वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत था। जमुनी मन मसोसकर रह गई और चुपचाप थाली परोसकर उसके सामने रख दी। भुखे जानवरों सा वह खाने पर टूट पड़ा। खाना खाते-खाते माधो ने एक बार फिर पूछा, ‘‘सच्ची बता री तू अस्पताल काहे गई थी?’’
जमुनी उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘क्यों पेट पिराने लगा? अरे मुए मैं वहां काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहां जादा मजदूरी मिले है.... पचास रुपए रोज।’’
‘‘पचास रुपए?’’ माधो की बांछें खिल गई।
‘‘बोल करेगा तू काम? तेरे लिए वहां जगह है।’’ जमुनी ने पूछा।
माधो खिलखिला पड़ा, ‘‘मैं और काम.... काहे तू मुझे खिला नही सकती क्या?’’
‘‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’’ जमुनी ने पलटकर पूछ लिया।
‘‘देख जमुनी सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए। तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’’
‘‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है वह भी आधा-आधूरा.... नामर्द कहीं का।’’ जमुनी उलाहना देते हुए बोली पर माधो पर इसका कोई असर नही हुआ।
‘‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहां काम पर?’’ जमुनी ने पूछा।
नशे में भी माधो जैसे चिंता में पड़ गया, ‘‘कौन ठेकेदार है?’’
‘‘हीरालाल.... ’’
‘‘अरे वू.... वू तो बड़ा कुत्ता-कमीना है।’’ माधो बिफर पड़ा।
‘‘तू कैसे जाने?’’
‘‘मैंने उसके हाथ के नीचे काम किया है।’’ माधो ने बताया।
‘‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो.... ’’ जमुनी ने प्रशंसा की।
‘‘हूं, शैतान की खोपड़ी है पूरा....’’ माधो गुस्से में बहका।
‘‘फिर ना जाऊं?’’ जमुनी ने पूछा।
माधो सोच में पड़ गया। उसके सामने पचास-पचास के हरे नोट फड़फड़ाने लगे और इसके साथ ही विदेशी दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी। इसलिए उसने अनुमति के साथ चेतावनी भी दे डाली, ‘‘ठीक है चली जा पर संभलकर रहियो वहां, बड़ा बदमाश आदमी है हीरालाल।’’
एक दिन समय निकालकर और हिम्मत जुटाकर जमुनी फिर ठेकेदार हीरालाल के पास पहुंच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके डेरे पर गई थी।
‘‘क्या बात है? फिर आ गई.... ’’ हीरालाल ने पूछा।
‘‘काम चाहिए और का?’’ जमुनी मुस्कराते हुए बोली।
प्रतीक चित्र
‘‘तेरे लिए काम कहां है? मेरे को चैकीदारी के लिए मरद चाहिए.... अब तुझे चैकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चैकीदारी करनी पड़ेगी।’’ जमुनी के जिश्म के उभारों पर ललचाई नजरें फिसलाते हुए हीरालाल भौड़ी हंसी में खिलखिला लगा।
‘‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’’ जमुनी ने बताया।
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ हीरालाल लापरवाही से बोला।
जमुनी निराश नही हुई। उसे वहां काम करने वाली मजदूरनी की नसीहतें याद आ गई। उसने बताया था कि अगर तू थोड़ा गिड़गिड़ाएगी, मिन्नतें करेगी तो ठेकेदार पिघल जाएगा। जमुनी ने वही पैतरा अपनाया, ‘‘बाबूजी आप नौकरी नही देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।’’
‘‘देख भाई इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूं। ऐसा कर तू मेरी भूख मिटा मैं तेरा और तेरे परिवार की भूख मिटाता हूं।’’ आॅख मटकाते हुए हीरालाल ने सीधा प्रस्ताव किया। जमुनी सोच में पड़ गई।
‘‘सोचती क्या है.... काम मेरे घर करना, हाजिरी वहां लग जाया करेगी।’’
‘‘अपने मरद से पूछकर बताऊंगी।’’ जमुनी ने कहा।
‘‘अरे उस माधो के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’’ हीरालाल ने विश्वास पूर्वक कहा।
अगले दिन ठेकेदार हीरालाल ने विदेशी शराब की एक पेटी माधो के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख माधो निहाल हो गया। उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह सपने में भी एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। हीरालाल तो सचमुच ही देवता आदमी निकला।
वायदे के मुताबिक हीरालाल ठेकेदार ने अपने जिस्म की भूख मिटाकर माधो की भूख-प्यास मिटाई। जमुनी को इस तरह तृप्त किया कि एक भावी मजदूर उसकी कोख में पलने लगा।
अपनी घर वाली का दिनों दिन पेट बढ़ता देख माधो को चिंता सताने लगी। उसने जरा सा छूट दी थी इसका मतलब यह थोड़े कि..... वह ठेकेदार हीरालाल के पास जाता कि विदेशी दारू की पेटी की एक और खेप उसके पास पहुंच गई। अंधा क्या चाहे दो आंखें..... उसके विचार बदलने लगे। हीरालाल तो देवता है, प्रसाद देगा ही..... जमुनी ही कुलक्षिणी है..... लेना भी न आया। आजकल तो इतने सारे साधन हैं कि.....
एक दिन नशे में धुत माधो जमुनी पर फट पड़ा। दिल की बात जुबान आ गई, ‘‘हरामजादी यह क्या कर आई?’’
जमुनी बेशरमी से अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बुढ़ापे में तेरी-मेरी देखभाल करने वाला ले आई हूं और का....?’’
पर यह हरामी का पिल्ला तो हीरालाल.....
जमुनी ने उसकी बात काट दी, ‘‘चीज किसी का हो, मेरी कोख में पल रहा है इसलिए यह मेरा बच्चा है। मेरा बच्चा यानि तेरा....’’
माधो जब कुछ देर तक कुछ नही बोला तो जमुनी उसकी ओर नजर उठाकर देखा। माधो नशे में एक ओर लुढका पड़ा था।

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