मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

‘और मैं कालगर्ल बन गई’


प्रतीक चित्र
मैं वाराणसी खाते-पीते परिवार की अकेली औलाद हूं। मेरा नाम फरजाना है। वालिद के एक दुर्घटना में मारे जाने पर मां को एक लाख का क्लेम मिला साथ ही उन्हें वह नौकरी भी मिली जिस पर वालिद साहब थे। मेरी मां ने डेढ़-दो लाख का दहेज देकर एक सम्पन्न परिवार के ऐसे लड़के से मेरा निकाह किया जो एक मशहूर फैक्ट्री में वर्क मैनेजर था। आठ हजार तनख्वाह थी।
ससुराल में जेठ डिग्री प्राप्त डाक्टर थे। घर में सब उन्हें खान साहब कहते थे। उम्र तीस-पैंतीस की थी। अच्छी पै्रक्टिस के साथ नेतागीरि में भी उनकी खासी पकड़ थी। एम0एल00 से लेकर एम0पी0 तक चुनाव लडे़ जमानतें जप्त हुई पर लखनऊ-दिल्ली में बैठे पार्टी नेताओं से अच्छे संबंध रहे। उनका विवाह नवाबी खानदान की एक लडकी से हुआ था। विवाह के तीन साल बाद एक बेटे को छोड़कर पत्नी जलकर मर गयी। कपड़ों में स्टोव की आग पकडने की वजह से वह सत्तर प्रतिशत जल गयी थी। हांलाकि अपने पति के पक्ष में बयान देकर मरी थी, फिर भी पुलिस ने केस दर्ज किया। क्योंकि लड़की के मायके वाले मौत को संदिग्ध मानते थे। दो-तीन साल की चक्करबाजी के बाद मामला बराबर हुआ।
मैं ब्याह कर आयी, काफी कद्र हुई। कद्र का वजह मेरा रूप और सौन्दर्य था। अच्छी कद-काठी, भरा-पूरा बदन, गोरा-चिट्ठा रंग, फूले गाल, कटीली आंखें। दिवंगत फिल्म अदाकारा दिव्या भारती की तरह थी। इसलिए सखियां मुझे दिव्या भारती कहकर पुकारती थी। मेरा शौहर अनवर मुझसे जरा हल्का पड़ता था। दुबले-पतला शरीर, झेंपू स्वभाव, देखने में खास खूबसूरत। सुहागरात को वह मेरे पास जरा झिझका-झिझका आया। मैंने पत्नि धर्म का निर्वाह किया। मगर ओस चाटकर प्यास बुझने वाली बात हुई। उसने खुद मेरी खुशामद करते हुए कहा, ‘‘बेगम....दवा कर रहा हॅूं.... जल्दी सब ठीक हो जाएगा....मैं अभी विवाह करने को तैयार नही था। चालीस दिन का कोर्स हकीम जी ने बताया था। अभी दस दिन का ही कोर्स हो पाया कि घर वालों ने विवाह कर दिया। हकीम जी ने बताया है कि चालीस दिन के कोर्स में मैं अपनी खोई पौरूष शक्ति पूरी तरह से वापस पा लूंगा।’’
अनवर ने खुद ही बताया था कि गलत आदतों का शिकार होने की वजह से वह काफी हद तक नपुंसकता का शिकार हो गया था। उसके दिल में यह मनोवैज्ञानिक डर, इलाज करने वाले किसी हकीम ने बिठा दिया था कि वह अभी औरत के लायक नही है। वरना वह कुछ बताता तो मैं नोटिस भी लेती। यह मेरा पहला पुरूष संसर्ग नही था। शादी से पूर्व भी मैं यौन सुख भोग चुकी थी। दरअसल कुंवारेपन में अच्छा खान-पान घर में कुछ काम होने की वजह मेरा दिन हमउम्र लडकियों से बातें करते बीतता था। उनकी सेक्स और पुरूष आनंद की बातें मेरे जेहन में हरदम गूंजती रहती थी। साथ ही कुछ मासिक गडबड़ी तथा वालिद के इन्तकाल के कारण मैं दिमागी तौर पर अपसेट हो उठी और मुझे दौरे पड़ने लगे।
पास-पड़ोस की जाहिल औरतें मेरी खूबसूरती की वजह से कहने लगी कि मुझे पर जिन्नात का साया पड़ गया है। इधर-उधर के इलाज के बाद एक तांत्रिक शब्बीर शाह साहब को बुलाया गया। वे एक सप्ताह तक मेरे घर रहे। झाड़-फूंक के बाद उन्होंने बताया कि मुझ पर पीपल वाले जिन्नात का साया है। जिन्नात काफी सख्त है, धीरे-धीरे उतरेगा। वे जाने क्या-क्या करते रहे। लोहबान, धूपबत्ती, फूल-माला, सिन्दूर, खोपड़ी रखकर अजीब-सा डरावना वातावरण पैदा करते। कभी चिमटा मार कर, कभी मेरे सिर पर झाडू फिराकर सुबह-शाम जिन्नात उतारते।
इस तरह दो दिन गुजरे, तीसरे दिन मुझे अकेले बन्द कमरे में ले गये। जहां पहले से ही खुटियों पर कुछ नाड़े बांध रखे थे। कुछ देर झाड़-फूंक करने के बाद वह मुझसे रौबदार आवाज में बोले, ‘‘नाड़ा खोलो।’’
मै खुटियों पर बंधे नाडे़ नही देख पायी थी। लिहाजा झट से मै अपनी शलवार का नाड़ा खोल बैठी। वो समझ गए कि मुझे पर कैसा जिन्नात है। आगे बढ़कर उन्होंने मुझे थामा। भींचा, चूमा और सीने से लगया...प्यार किया और जिन्नात उतारने वाले मंत्र बड़बडाते...जिन्नात से लड़ने वाले अन्दाज दर्शाते हुए बन्द कोठरीनुमा कमरे में मेरे साथ मेरा वास्तविक जिन्नात उतारते हुए खुद जिन्नात बनकर लिपट गए। मेरी कमीज उतार दी... ब्रा ढीली कर दी, फिर बेहद सुखदायक अन्दाज में मेरी नस-नस में तरंग जगाकर वे मुझसे संसर्ग कर बैठे।
शील-भंग होते समय मेरी हालत जरा खराब हुई, पर शाह साहब ने बड़े कायदे से प्यार कर-करके मुझे सम्भाला और वह आनन्द दिया कि मेरे रोम-रोम का नशा उतर गया। उस दिन उन्होंने पूरे दो घण्टे तक जिन्नात उतारा। दो घण्टे में तीन बार मेरे साथ जिन्नात बनकर लिपटे..... थका-थका कर मुझे बेहाल कर दिया। उनसे पाये आनन्ददायक सुख को मैं जीवन में कभी भूल नही सकती।
अगले चार दिनों तक सुबह-शाम घण्टे-दो घण्टे जिन्नात उतारने के बहाने वह मुझे कोठरी में ले जाते और सम्भोगरत होकर मेरी नस-नस ढीली कर देते।अब कहां को भूत, कहां का जिन्नात.... मैं पूर्ण स्वस्थ हो गयी क्योंकि मुझे जिस मर्ज की दवा चाहिए वह मिल गयी थी। एक दिन आनंद की क्षणों में मैं शाह साहब से बोली, ‘‘मैं आप पर मर मिटी हॅंू.... आप जाइएगा तो मेरा क्या होगा?’’
     ‘‘चालीस दिनों का समय बिताकर जाऊंगा। आगे एक महीने का कोर्स चलेगा। तुम्हारी बालदा हफ्ते में एक बार तुम्हें लेकर मेरे पास आती रहेगी। हमारा एक-दो दिन तक मिलन होता रहेगा। फिर कोई अच्छा सा रास्ता चुन लेगे।’’
     ऐसा हुआ भी, मेरी मां मुझे उनके पास लेकर आती रही। उनके अपने घर में तो मां मेहमान थी। जिन्नात उतारने के बहाने शाह साहब तीन-तीन चार-चार ट्रिप लगा जाते। मेरे चेहरे पर लाली, रंगत वापस आने लगी तो मां को यकीन हो गया कि शाह की तांत्रिक शक्तियां जिन्नात पर काबू पाने में सफल हो रही हैं।
एक महीने तक मां मुझे उनके पास लेकर जाती रही। फिर मैं इन्तजार करती रही कि शाह साहब कोई युक्ति निकालेगें, लेकिन उन्होंने पलटकर भी नही देखा। माॅ ने बाद में बताया कि दस हजार रूपये खर्च करने पडे थे। पर वे सन्तुष्ट थी कि जिन्नत ने पीछा छोड़ा। उस समय मेरे सामने पैसों का कोई महत्व नही था। मुझे जो मर्ज था, दवा चाहिए थी मिल गयी थी।
मैंने छोटी उम्र में पढाई शुरू की थी। बी00 उन्नीसवें साल में कर लिया। इस बीच मेरी शादी की चर्चा भी चल पड़ी। साल-डेढ़ साल शादी की चर्चा चलती रही.... मैं भावी शौहर की कल्पना में खोकर समय गुजारती रही। शौहर जैसा मिला, आपको बता ही चुकी हॅू।
प्रतीक चित्र
यहां मैं यह भी बता दूं कि मेरे विवाह की बात पहले मेरे जेठ से चली। पर मां ने उमर अधिक कहकर बात को टालते हुए दूसरे लड़के अनवर के लिए जोर डाला था। अनवर, मेरा शौहर, मुझसें उम्र में लगभग बराकर का है। जेठ के दिमाग में यह बात हमेशा रही कि अनवर के बजाय मुझें उसकी पत्नी होना चाहिए था।
घर में उनकी बात सबसे ऊपर रहती थी। अच्छी पर्सनाल्टी के साथ वह घर में सब पर रौब-दाब रखते है। मेरी ससुराल में मायके के मुकाबल परदा बस नाम का था। अतः ससुराली महौल में जेठ के सामने बगैर परदे, आने वाले मेहमानों के साथ बस आंचल ढककर सामने बैठना, चाय नाश्ता मुझे करना...पढ़ी लिखी होने के नाते उनके बीच बैठकर बातें करना, हसी-मजाक में दिन गुजारना.... चलता रहता था।
जेठ जी धीरे-धीरे मुझसे बेतकल्लुफ होने लगे। मुझे मुस्कराकर देखते, नर्म व्यवहार करते। घर में फल-फ्रूट जो भी लातेफरजाना... फरजानाकहकर मेरे हाथ में ही थमाते, उस समय हाथ छू लेते.... मुस्करा देते।
वक्त गुजरता रहा, एक दिन मैं जेठ की दिवंगत पत्नी के छोटे बेटे बबलू को गोद में लेने के बहाने उन्होंने मेरी बाहें थाम ली। क्योंकि बबलू मेरी गोद से नही उतर रहा था। उनकी इस बेतकल्लुफी से मुझे लगने लगा था कि किसी--किसी दिन वह मुझसे कुछ करके ही मानेंगे।
उधर मेरे शौहर अनवर की हालत यह थी कि मर्दाना ताकत की दवाएं खाकर भी पूरा मर्द बन पा रहा था। कभी मेरे दिल में जेठ के लिए बेईमानी जाती तो, मैं अपने आपको संभाल लेती थी। मेरे शौहर की नौकरी एक सप्ताह दिन, एक सप्ताह रात शिफ्ट में चलती रहती थी। जेठ को मुझ पर डोरे डालने के लिए दिन के साथ-साथ रात में भी काफी मौका मिलता था।
एक दिन सास-ससुर एक शादी में गए तो उनके साथ सब बच्चे भी चले गए। अनवर की दिन का शिफ्ट था। घर में मैं अकेली रह गयी थी। जेठ जी जैसे इसी दिन की तलाश में थे। उस दिन वह तबियत खराब होने का बहाना कर क्लीनिक से जल्दी घर आकर सीधे अपने कमरे में चले गए। शायद अपने इरादों को मजबूत बना रहे थे।
जेठ के इरादों से अंजान मै नहाने के लिए गुसलखाने में घुस गयी। लापरवाही या कहा जाए उनकी किस्मत से मै अंदर से कुंडी लगाना भूल गयी। पूरे कपड़े उतार कर जैसे ही मै नहाने को हुई, वह गुसलखाने का दरवाजा खोलकर अंदर आए और कुंडी बंद कर ली।
इस दशा में जेठ को देख मै मारे खौफ और शर्म के काठ होकर बैठी की बैठी रह गयी। मुझे निर्वस्त्र पाकर जेठ की दिवानगी पागलपन को पार कर गयी थी। उन्होंने मुझे खीचकर अपनी आगोश में ले लिया फिर मेरे उरोजों को मसल-मसल कर अपनीं दीवानगी का खुला प्रदर्शन करते हुए, गाल पर दांत गड़ा डालें। मैं खुशामदें करती रही, उन्होनें मुझे घसीट कर वहीं ठण्डे फर्श पर खुद गुसल करने की अवस्था में आकर पोजीशन सम्भाल ली। मेरे ना-नाका कोई असर हुआ।
उनकी मजबूत देह और जोशीली ताकत और मर्दाना ताकत देख मैं जलती शमा की तरह पिघल उठी तो मेरा विरोध हल्का पड़ गया। उन्होंने अपनी मनमर्जी की कर डाली। मेरे मन का सारा डर, संकोच मिटा डाला तो मेरी वाहे उनके कंधों पर जम गयी। वे मुझे लिपटाते.....प्यार करते....जोश में रहकर मेरे होश खराब करते कह उठे थे, ‘‘फरजाना... तुम्हे पाने की चाह में मैं कितने दिनों से तड़प रहा था, तुम हाथ ही रखने देती थीं..... अपने आपको, अपनी जवानी को यूं ही मिटा रही थी।’’
‘‘यह गुनाह हैं..... ’’
‘‘मारो गोली गुनाह को..... ऐसा कुछ नही होता। इस मामले में तो मनमर्जी को सोदा होना चाहिए। अनवर इस मामले में नाकारा है। मुझे मालूम हुआ कि वह छुप-छुपाकर दवाऐं लेता है तो, मैने उस डाक्टर और हकीम से मिलकर मालूमात की तो पता चला वह अर्धनपुंसक है। तुम्हें क्या सुख दे पाता होगा! तुम गीली लकड़ी की तरह सलगती रहती होगी..... उसकी तीली में ऐसी सीलन है जो बार-बार घिसने पर जलती होगी....और जलकर फंूक से बुझ जाती होगी।’’
वह कह तो सही रहे थे। वाकही अनवर था ही ऐसा। वह आग लगाना तो जानता था बुझाना उसके बस का नही था। उस दिन गुसलखाने से निपटने के बाद पवूरा दिन जेठ ने मुझे ले जाकर अपने बैडरूम मे सताया। अनवर रात को आठ बजे ड्यूटी पर आया, तब तक मुझे थका-थका कर जेठ ने चूर-चूर कर डाला था।
उस दिन के बाद जब अनवर की ड्यूटी रात की होती तो, आधी रात के वक्त जेठ मेरे बैडरूम में घुस आते थे। मैं बीबी अनवर की थी पर पूरी भोग्या जेठ बन गयी थी। जल्द ही मैं उम्मीद से हो गयी तो अनवर को झटका लगा। क्योंकि तीन माह से वह लगातार इलाज करवा रहा था। इस दौरान उसे पत्नी के पास जाने की सख्त पाबन्दी थी और वह इस पर अमल भी कर रहा था।
मेरे पैर भारी हुए तो दब्बू और अर्ध नपुंसकता का शिकार अनवर एकदम मर्द बन गया। मुझसे सख्ती से पूछ-ताछ की। इससे पहले कि वह मुझ पर किसी बाहरी व्यक्ति से मुंह काला करने का इल्जाम लगा पाता, मैंने जेठ की करतूत का भाण्डा फोड़ कर दिया। वह चुप हो गया पर उसके मन के अन्दर एक तूफान मचलने लगा।
एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर उसने फैक्ट्री एरिया में आवास के लिए दरख्वास्त लगायी और एक रिहायसी क्वाटर ले लिया। तीन कमरों को क्वाटर था। मुझे ले जाकर दिखाया। मुझे कमरा पसन्द गया तो मां-बाप से इजाजत लेकर वह मुझे लेकर यहां गया।
यहां आकर अनवर इस कोशिश में लग गया था कि वह मेरे गर्भ में पल रहे नाजायज बच्चे को गिरवा दे। मैं कुछ-कुछ रजामन्द भी हो चुकी थी, पर जेठ अनवर के ड्यूटी पर होने का फायदा उठाते हुए यहां भी मेरे साथ अय्याशी करते थे। उन्हें जब अनवर के इरादे की जानकारी हुई तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि मैं गर्भपात कराऊ।
जेठ ने मेरे मन में एक तो यह डर पैदा किया कि कभी-कभी गर्भपात कराने के गर्भपात कराने से गर्भाशय में ऐसी खराबी जाती है कि जिन्दगी में दोबारा गर्भ ठहरना सम्भव नहीं हो पाता। फिर अनवर इस लायक नहीं कि मुझे मां बना सके। बच्चे के बगैर औरत को जीवन अधूरा है।
जेठ की पढ़ाई पट्टी मैंने कुछ ऐसी पढ़ ली कि सारी बातें दिमाग के खाने में फिट बैठ गयी। एक दिन गर्भपात कराने के लिए अनवर जब अस्पताल चलने को कहा तो मैं साफ इनकार कर गयी। हमारी तकरार बढ़ी उसने मुझ पर हाथ छोड़ा। मुझे बदचलन, आवारा, छिनाल कहा। मैने उसे नार्मद कहा।
तनाव जबरदस्त बढ़ा तब वह मुझे ले जाकर मेरे मायके छोड़ आए। जेठ से उनकी काफी लड़ाई हुई। जेठ मेरा पक्ष ले रहा थे। वह मुझे लेने गये। मैं मां के कब्जे में थी। मां से मैंने अनवर की मार-पीट ज्यादतियों के बारे में सब कुछ बता चुकी थी। इसलिए उन्होनें साफ मना करते हुए कहा, ‘‘अनवर मियां स्वयं आकर माफी मांगे कि आइन्दा वह लडकी से कभी मार-पीट नही करेगें तभी वह मुझे भेज सकती है।’’
अनवर आया। मेरे गर्भ में बच्चा पलता रहा। जेठ जी बार-बार कोशिशें करते रहे पर सुलह हो सकी। मेरे मायके के सभी लोग एकमत थे, उन्होंने अनवर के खिलाफ कानूनी नोटिस भेज दिया। मार-पीट और पेट में गर्भ होने की अवस्था में अमानवीय क्रूरता के साथ घर से निकाल देने का मुकदमा चला दिया। इस बीच मेरे जेठ का झुकाव मेरी ओर रहा, पर उसके और मेरे खानदान वालों में पूरी तनातनी और नाक की बात बन गयी थी। नौबत तलाक तक पहुंची। मेहर सामान के साथ दफा 125 का खर्चा भी अनवर पर कोर्ट ने बांध दिया।
प्रतीक चित्र
मेरे मायके के लोग बाल से खाल इस बात की भी निकाल बैठे थे कि मेरे ससुराल वाले लालची रहे हैं। दहेज उत्पीड़न का मुकदमा चला। जिसमें जेठ की दिवंगत पत्नी का भी हवाला रखा गया कि उसे भी दहेज उत्पीड़न के कारण जलाकर मार डाला गया था।
मुकदमें के दौरान जेठ चाहता था कि मैं उसका पक्ष लूं। अपने मायके के दबाव की वजह से पक्ष लेना तो दूर, मैं उनसे बात भी कर पा रही थी। सारी अदालती कार्यवाहियां मेरे पक्ष में जाती रही। यहां तक कि अनवर मेरे जेठ को जेल जाना पड़ा, हाईकोर्ट से जमानतें करानी पड़ी।
वे जमानत पर छूटे। फिर कम्प्रोमाइज पर बात आयी। तलाक तो हो ही चुका था, कम्प्रोमाइज इस बात की कि आगे कोई किसी के खिलाफ पुलिस-कोर्ट केस करे। मेरी मां भी कोर्ट-कचहरी से थक चूकी थी। विपक्षी झुक रहा था, लोगों को बीच में डालकर सुलह-समझौता हो गया।
मुकदमें के दौरान ही मेरी डिलीवरी हुई। लड़का हुआ था। वह अब तीन साल का है। मेरी मां पाल रही है। उसे कानूनी वैधता प्राप्त है कि वह अनवर की निशानी है।
ससुराल वालों की एक रिश्तेदरी मेरे घर के पास ही थी। मैं उन्हें शबीना खाला कहती थी। मेरा उनके यहां आना-जाना था। यही मैं मुकदमें के दौरान चोरी-छिपे अपने जेठ से मिलती रहती थी। बाद में भी मिलती रही। धीरे-धीरे जेठ ने मुझे इस बात पर राजी कर लिया कि मैं उनके साथ चलकर रहूं। क्यों कि अब मैं उनसे शादी करने को आजाद हूं। हमारा बच्चा भी हमारे प्यार को पाकर पलेगा। जेठ ने यह भी झांसा दिया कि वह अपने घर को छोड़कर, जहां मैं कहूं चलने को तैयार है।
मैं उनके फरेब में गयी। इस बात को भूल गयी कि अब वह मेरा जेठ नही। मेरे बच्चे का बाप होकर भी बाप नही बल्कि उस ससुराली दुश्मन का एक मेम्बर है, जिसकी मुकदमें में जबरदस्त नाक कटी थी। एक दिन सहेली की शादी में जाने का बहाना करके घर से दो जोड़ी कपड़े और कुछ जेवर लेकर जेठ के साथ टेª में बैठकर दिल्ली गयी।
दिल्ली में उन्होंने मुझे एक होटल में रखा। रातें बितायी। उनके साथ ऐश के दिन-रात काटने से यादें ताजा हो आयी। वे इधर-उधर भाग-दौड़ कर यह साबित कर रहे थे कि वे अपनी प्रैक्टिस रहने के लिए जगह तलाश रहे है। मैं उन पर विश्वास करती रही, बाद में पता चला कि वह सिर्फ मुझसे बदला लेने के फिराक में थे। मगर जब तक पता चला बहुत देर हो चुकी थी। वापसी के सारे रास्ते बंद हो चुके थे, मैं एक कोठे पर बेची जा चुकी थी।
कोठा मालकिन ने प्यार से, मनुहार से, धमकी देकर और फिर भी मानी तो पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। मुझे कई-कई दिन भूखे रखा गया। मेरे साथ एक-एक दिन पांच-पांच मुस्चंडों ने बलात्कार किया। आखिर मैं हार गयी और कोठा मलकिन की लाडली बनकर रोज नये मर्दों के नीचे बिछने लगी। छह माह यूं ही गुजर गए, इस दौरान मैंने उनका विश्वास हासिल कर लिया और इसी विश्वास का फायदा उठाकर एक दिन वहां से फरार होने में कामयाब हो गयी।
कोठा छोड़ने के बाद ही मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यह दुनिया अकेली औरत के लिए हरगिज नही है। जीने के लिए किसी मर्द की मजबूत बांहों का सहारा आवश्यक है। दो रातें मैने स्टेशन गुजारी और दिन में काम तलाशती रही। काम तो नही मिला कितुं एक हमदर्द मेहरबान अधेड़ जरूर मिल गया जो मेरी सारी कहानी जानने के बाद मुझे अपने घर ले गये।
उस रात बेटी-बेटी कहने वाले उस अधेड़ ने जबरन मेरे साथ संबंध बनाए। मैं बस नाम मात्र को ही उनका विरोध कर सकी थी। बाद में मालुम हुआ कि वह व्यक्ति कालगर्ल रैकेट चलाता है। उसने मुझे भी धंधे में लगा दिया। एक बार फिर हर रात मर्दों का बिस्तर गर्म करने लगी। लेकिन कोठे पर रहकर धंधा करने से यह कहीं ज्यादा बेहतर था। मैं कालगर्ल बन गयी, आज भी इसी धंधे में रमी हुई हूं। अब मैं इस धंधे से किनारा करने के बारे में सोचती तक नहीं।
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2 टिप्पणियाँ:

यहां 13 अप्रैल 2013 को 4:37 am बजे, Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कहानी काल्पनिक है या सच्ची है!

 
यहां 13 अप्रैल 2013 को 4:53 am बजे, Blogger Shriyam News Network ने कहा…

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी, नमस्कार। कहानी काल्पनिक है। टिप्पणी कर हमारा हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद्……

 

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